SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आराधना प्रकरण 25 प्रकार के आहार से भी तृप्ति प्राप्त नहीं हुई अर्थात् कारण (आहार) हैं, लेकिन कार्य (तृप्ति) का अभाव है । अतः यहाँ विशेषोक्ति अलंकार है । विभावना अलंकार - विरोधमूलक अलंकार । कारण के अभाव मे कार्योत्पत्ति का चमत्कारपूर्ण वर्णन विभावना अलंकार है। साहित्य दर्पण में विभावना का लक्षण प्रस्तुत करते हुए कृतिकार कहते हैं - विभावना बिना हेतुं कार्योत्पत्तिर्यदुच्यते ॥ (साहित्य दर्पण, 10/87 ) अर्थात् जहाँ बिना कारण के ही कार्य की उत्पत्ति हो जाए वहाँ विभावना अलंकार होता है। आराधना प्रकरण में प्रस्तुत गाथा में इसका प्रयोग देखने को मिलता है . जेण विणा चारित्तं सुअं तवं दाणसीलं अवि सव्वं । , कासकुसुमं व विहलं, इअ मुणिअं कुणसु सुहभावं ॥ (गाथा, 58 ) यहाँ चारित्र रूप कारण के अभाव में श्रुत, तप, दान, शील आदि कार्य की विफलता रूप कार्योत्पत्ति दिखाई गई है। उपमा अलंकार - उपमा का अर्थ होता है, निकट रखकर तौलना । अर्थात् उपमेय और उपमान के किसी गुण के एकरूपता के कारण समानता प्रतिपादित करना । उपर्युक्त गाथा ही इसका उदाहरण है "कासकुसुमं व विहलं।" (गाथा 58 ) उपर्युक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि कवि ने तो जानबूझकर अलंकारों का प्रयोग नहीं किया लेकिन प्रस्तुत कृति आराधना प्रकरण में अलंकारों के सहज प्रयोग ने काव्य में और अधिक सौन्दर्य एवं चारुता को संवर्द्धित किया है । भाषा भाषा शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में प्रचलित है | भावाभिव्यक्ति के सभी साधनों को सामान्य रूप से भाषा कह दिया जाता है। इस प्रकार के अर्थों को पशुपक्षियों की बोली, इंगित, विभिन्न संकेत और मानव की भाषा शब्दों के द्वारा ग्रहण किया जाता है। इनमें से प्रथम तीन भेद अस्पष्ट एवं अपूर्ण प्रतीत होते हैं। उनके द्वारा गम्भीर भावों की अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती है। मानव अपने भावों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy