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________________ आराधना प्रकरण वैशिष्ट्य - इस संसार में अनादि-काल से जीव कर्मबद्ध है। वह हर क्षण संसार से मुक्त होना चाहता है। मुक्ति के लिए सभी दर्शनों में अलग-अलग मार्गों का उल्लेख किया गया है। जैन दर्शन वीतराग अवस्था से ही मुक्ति प्राप्ति का उपदेश देता है। वीतरागी बनने के लिए साधना, त्याग, तपस्या आदि का पालन निर्दिष्ट है। आराधना प्रकरण का वैशिष्ट्य इस रूप में आँका जा सकता है कि यह जीव को सराग से विराग, संसारी से सिद्ध और सांसारिक दु:खों से शाश्वत सुख की ओर प्रवृत्त होने का मार्ग प्रशस्त करता है। आराधना प्रकरण में अंतिम गाथा में रचनाकार ने इसका वैशिष्ट्य प्रतिपादित करते हुए कहा है कि यह आराधना कर्मों का शमन करने वाली है, जो इसका अनुसरण सम्यक् रूप से करता है, वह शाश्वत सुख को प्राप्त करता है। वह शाश्वत सुख निर्वाण का सुख है, जिसे प्राप्त करना जीव का अनादिकाल से लक्ष्य है। आराधना प्रकरण ग्रंथ में पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है। ये पंच परमेष्ठी मंगल रूप हैं। सांसारिक प्राणियों का मंगल के प्रति समर्पण और उसको प्राप्त करना यह लक्ष्य रहता है। मंगलरूप इन उपमानों के गुणों को प्राप्त करने का प्रयास व्यक्ति जीवन पर्यन्त करता है। इस दृष्टि से आराधना प्रकरण नामक यह कृति आत्म-कल्याण के लिए इन गुणों को प्राप्त करने की प्रेरणा देती रहती है। जैन आगमों को विषय की दृष्टि से चार भागों में विभाजित किया जाता है1. धर्मकथानुयोग 2. चरणानुयोग 3. द्रव्यानुयोग 4. गणितानुयोग उपर्युक्त चार अनुयोगों में से आराधना प्रकरण का विषय चरणानुयोग से सम्बन्धित है। भव-बन्धन को काटने के लिए व्यक्ति को जिस धर्म आराधना का पालन करने का निर्देश ग्रंथ में किया गया है, वह साधना परक है। समिति, गुप्ति, महाव्रतों आदि के पालन द्वारा श्रमण धर्म के आचार का वर्णन बड़े सरस, सरल एवं सुन्दर ढंग से किया गया है। वह कवि की अपनी प्रतिभा का द्योतक है। न केवल आचार परक बल्कि सैद्धांतिक बिन्दुओं का भी विवेचन कवि ने इस कति में किया है। जैन धर्म के आचार परक बिन्दुओं का अन्तःसम्बन्ध, दार्शनिक एवं सैद्धांतिक विषय से होने के कारण सम्यक्त्व, ज्ञान, योग, मिथ्यात्व और कषाय जैसे शब्दों को इस ग्रंथ में अच्छी तरह व्याख्यायित किया गया है। संसार में रहने वाले प्राणी भौतिक सुखों की प्राप्ति में लगे रहते हैं। भौतिक सुख को प्राप्त करना जीव का लौकिक उद्देश्य कहा गया है, जबकि निर्वाण का सुख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002547
Book TitleAradhana Prakarana
Original Sutra AuthorSomsen Acharya
AuthorJinendra Jain, Satyanarayan Bharadwaj
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2002
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Spiritual
File Size3 MB
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