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मंसव्व णवणीदं च, हट्ट-भोयण भक्खणं । रत्तव्वागालिदं णीरं, मंसव्व णिसिभोयणं ॥८०||
अन्वयार्थ- (णवणीदं) नवनीत (च) और (हट्ट-भोयण भक्खणं) बाजार का भोजन खाना (मंसव्व) मांस के समान है (रत्तव्वागालिदं णीरं) अनछना जल खून के समान है [तथा] (मंसव्व णिसिभोयणं) रात्रि भोजन मांस के समान है ।
___ भावार्थ- तैयार होने के अन्तर्मुहुर्त-अड़तालीस मिनिट बाद नवनीत-मक्खन मांस के समान हो जाता है, क्योंकि उसमें अनन्त जीव राशि उत्पन्न हो जाती है । बाजार का भोजन इसलिए मांस के समान है क्योंकि उसमें शुद्धि-अशुद्धि, शाकाहार-मांसाहार और जीवों की रक्षा का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा जाता है । बिना छने जल में अनन्तानन्त सूक्ष्म कीटाणु होते हैं, अत: वह खून के समान कहा गया है । रात्रि में अनन्त छोटे-छोटे जीव-कीटाणुओं का संचार अत्यधिक बढ़ जाता है तथा सूर्यास्त के कारण पर्यावरण भी बदल जाता है, इसलिए रात्रि-भोजन मांस के समान है । इनका भलीभाँति त्याग करना चाहिए । मंसा दसगुणं धण्णं, धण्णा दसगुणं फलं । फला खीरं च खीरादो, घिदं जले गुणाहियं ॥८१॥
अन्वयार्थ- (मंसा दसगुणं धण्णं) मांस से धान्य में दस गुण (धण्णा दसगुणं फलं) धान्य से फल में दस गुण (फला खीरं) फल से दूध में (खीरादो घिदं) दूध से घी में [तथा] (जले) जल में (गुणाहियं) गुणाधिक्य होता है ।।
__ भावार्थ- कुछ मूर्ख लोग मांस को ताकत देने वाला मानते हैं, किन्तु ऐसा है नहीं । मांस से धान्यों (अनाजों) में दस गुण अधिक होते हैं, धान्य से फल में, फल से दूध में, दूध से घी तथा पानी में अधिक-अधिक गुण पाये जाते हैं। पानी सबसे गुणवान
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