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जाने पर कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है । कभी-कभी तो प्राण जाने का भी खतरा रहता है ।
णरत्तं सुउले जम्मं लच्छी बुद्धी सुसीलदा । विवेगेणं विणा सव्वं, गुण दोस व्व णिप्फलं ॥३॥
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अन्वयार्थ - ( णरत्तं) मानुषत्व (सुउले जम्मं) सुकुल में जन्म ( लच्छी) लक्ष्मी ( बुद्धी) बुद्धि (सुसीलदा) सुशीलता [ आदि ] (विवेगेणं विणा ) विवेक के बिना (सव्वं ) सभी (गुण) गुण (दोस व्व) दोषों के समान (णिप्फलं) निष्फल हैं।
भावार्थ- मनुष्यता- दयालुता, अच्छे कुल में जन्म, बहुत सारी धन-सम्पत्ति, बुद्धि- किताबी ज्ञान और सुशीलता आदि सभी गुण विवेक अर्थात् सोच-विचार की अच्छी क्षमता के बिना निष्फल दोषों के समान ही निष्फल हैं ।
ट्टं गदं अपत्तव्वं, णो हि सोचंति पंडिदा । पंडिदाणं च मुक्खाणं, विसेसो मज्झ दोह वि ||४||
अन्वयार्थ - (णद्वं) नष्ट हुए (गदं) गये हुए [तथा] (अपत्तव्वं ) अप्राप्ति के योग्य [पदार्थ के विषय में] (पंडिदा) बुद्धिमान् जन (णो सोचंति) शोक नहीं करते (हि) वस्तुत: (पंडिदाणं च मुक्खाणं) पंडित और मूर्ख (दोह-मज्झ) दोनों के बीच (वि) यही (विसेसो) विशेषता है ।
भावार्थ- नष्ट हुए, गये हुए और अप्राप्ति के योग्य पदार्थों के विषय में विवेकीजन शोक नहीं करते, अधिक विचार नहीं करते अपितु जिससे वर्तमान जीवन और भविष्य सुखमय हो ऐसा यत्न करते हैं; इसके विपरीत अज्ञानीजन नष्ट हुए, मरे हुए, चोरी गए हुए और अति दुर्लभ भौतिक पदार्थों के सम्बन्ध में ही विचार करते हुए आर्त्त-रौद्र ध्यान करते रहते हैं । वस्तुत: पंडित और मूर्ख में यही अन्तर है ।
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