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भावार्थ- यहाँ यह प्रश्न उपस्थित हुआ है कि यदि कमजोर व्यक्ति धर्म का पालन करते हुए कुछ दोष कर बैठता है, तो क्या धर्म मलिन हो जाता है । इसका उत्तर भी प्रस्तुत अनुष्टुप में आ गया है, कि जिस प्रकार समुद्र में मेढ़क के मर जाने पर पूरा समुद्र दुर्गन्धित नहीं हो जाता है, उसी प्रकार किसी अशक्त साधक से दोष होने पर पूरा धर्म मलिन नहीं हो जाता है ।
अहिंसा सचमत्थेय, बंभ-खम-अलोहदं । भूदप्पेम हिदिच्छं च, धम्मो कल्लाण कारगो ॥३९॥
अन्वयार्थ- (अहिंसा सचमत्थेयं बंभ खम अलोहदं च भूदप्पेम हिदिच्छं) अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, क्षमा, अलोभता और जीवों के प्रति प्रेम तथा हितेच्छा रूप (धम्मो) धर्म (कल्लाण कारगो) कल्याणकारक है ।
भावार्थ- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, क्षमाभावना, संसार के सभी जीवों के प्रति प्रेमभाव और अपने तथा अन्य जीवों के हित की निरन्तर इच्छा रखने रूप धर्म ही कल्याणकारक है।
जत्थ अस्थि सियावाओ, पक्खवादो ण विजदे |
अहिंसाए पहाणत्तं, जिणधम्मो स वुचदे ॥४०॥ - अन्वयार्थ- (जत्थ सियावाओ अत्थि) जहाँ स्याद्वाद है (पक्खवादो ण विजदे) पक्षपात नहीं है (अहिंसाए पहाणत्तं) अहिंसा की प्रधानता है (स) वह (जिणधम्मो) जिन धर्म (वुच्चदे) कहलाता
भावार्थ- जहाँ पर स्याद्वाद वाणी विद्यमान है । किसी प्रकार का एकान्तवाद, पक्षपात जहाँ नहीं है तथा जिसमें अहिंसाधर्म की प्रधानता है, वह जिनेन्द्रदेव द्वारा कथित जैनधर्म कहलाता
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