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________________ भगवद्गीता में समत्वयोग और भक्ति का कोई मूल्य या अर्थ सही होता है। वस्तुतः ज्ञान, कर्म और भक्ति जब तक समत्व से युक्त नहीं होते हैं, उनमें समत्व की अवधारणा नहीं होती है, तब तक ज्ञान मात्र ज्ञान ही रहता है, वह ज्ञानयोग नहीं होता । कर्म मात्र कर्म रहता है, कर्मयोग नहीं बनता और भक्ति भी मात्र श्रद्धा या भक्ति ही रहती है, वह भक्तियोग नहीं बनती है, क्योंकि इन सब में हम में निहित परमात्मा से जोड़ने का सामर्थ्य नहीं आता । 'समत्व' ही वह शक्ति है जिससे ज्ञान ज्ञानयोग के रूप में, भक्ति भक्तियोग के रूप में और कर्म कर्मयोग के रूप में बदल जाता है । जैन परम्परा में भी ज्ञान, दर्शन (श्रद्धा) और चारित्र (कर्म) जब तक समत्व से युक्त नहीं होते, सम्यक् नहीं बनते । और जब तक ये सम्यक् नहीं बनते, तब तक मोक्ष-मार्ग के अंग नहीं होते हैं । २. गीता के अनुसार मानव का साध्य परमात्मा की प्राप्ति है, और गीता का परमात्मा या ब्रह्म 'सम' है । जिसका मन 'समभाव' में स्थित है वह तो संसार में रहते हुए भी मुक्त है, क्योंकि ब्रह्म भी निर्दोष एवं सम है । वह उसी समत्व में स्थित है जो ब्रह्म है और इसलिए वह ब्रह्म में ही है। इसे स्पष्ट रूप में यों कह सकते हैं कि जो 'समत्व' में स्थित है वह ब्रह्म में स्थित हैं, क्योंकि 'सम' ही ब्रह्म है। गीता में ईश्वर के इस समत्व रूप का प्रतिपादन है । नवें अध्याय में कृष्ण कहते हैं कि मैं सभी प्राणियों में 'सम' के रूप में स्थित हूँ । तेरहवें अध्याय में कहा है कि सम-रूप परमेश्वर सभी प्राणियों में स्थित है; प्राणियों के विनाश से भी उसका नाश नहीं है । जो इस समत्व के रूप में उसको देखता है वही वास्तविक ज्ञानी है, क्योंकि सभी में समरूप में स्थित परमेश्वर को समभाव से देखता हुआ वह अपने द्वारा अपना ही घात नहीं करता अर्थात् अपने समत्वमय या वीतराग स्वभाव को नष्ट नहीं होने देता और मुक्ति प्राप्त कर लेता है। ३. गीता के छठे अध्याय में परमयोगी के स्वरूप के वर्णन में यह धारणा और भी स्पष्ट हो जाती है। गीताकार जब कभी ज्ञान, कर्म या भक्तियोग १. गीता, ५।१९, गीता (शां) ५२१८ २. गीता, ५।१९ ३. गीता, ९।२९ ४. वही, १३१२७-२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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