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________________ समत्वयोग-एक समनवयदृष्टि हुए सामासिक शब्द लगभग अस्सी बार आये हैं, परन्तु चार पाँच स्थानों के सिवा (६ -१२-२३) योग शब्द से 'पातंजल योग' (योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः) अर्थ कहीं भी अभिप्रेत नहीं है - सिर्फ युक्ति, साधन, कुशलता, उपाय, जोड़, मेल यही अर्थ कुछ हेर-फेर से समूची गीता में पाये जाते हैं । इससे इतना तो सिद्ध हो ही जाता है कि गीता में योग शब्द मन की स्थिरता या समत्व के अर्थ में भी प्रयुक्त हुआ है। साथ ही यह भी सिद्ध हो जाता है कि गीता दो अर्थों में योग शब्द का उपयोग करती है, एक साधन के अर्थ में, दूसरे साध्य के अर्थ में । जब गीता योग शब्द की व्याख्या 'योगः कर्मसु कौशलम्' के अर्थ में करती है, तो यह साधन-योग की व्याख्या है। वस्तुतः हमारे भौतिक स्तर पर अथवा चेतना और भौतिक जगत् (व्यक्ति और वातावरण) के मध्य जिस समायोजन की आवश्यकता है, वहाँ पर योग शब्द का यही अर्थ विवक्षित है। तिलक भी लिखते हैं कि एक ही कर्म को करने के अनेक योग या उपाय हो सकते हैं, परन्तु उनमें से जो उपाय या साधन उत्तम हो उसी को योग कहते है । 'योगः कर्मसु कौशलम्' की व्याख्या भी यही कहती है कि कर्म में कुशलता योग है । किसी क्रिया या कर्म को कुशलतापूर्वक सम्पादित करना योग है । इस व्याख्या से यह भी स्पष्ट है कि इसमें योग कर्म का एक साधन है जो उसकी कुशलता में निहित है अर्थात् योग कर्म के लिए है । गीता की योग शब्द की दूसरी व्याख्या 'समत्वं योग उच्यते' का सीधा अर्थ यही है कि 'समत्व को योग कहते हैं ।' यहाँ पर योग साधन नहीं, साध्य है । इस प्रकार गीता योग शब्द की द्विविध व्याख्या प्रस्तुत करती है, एक साधन-योग की और दूसरी साध्य-योग की । इसका अर्थ यह भी है कि योग दो प्रकार का है - १. साधन-योग और २. साध्य-योग । गीता जब ज्ञानयोग, कर्मयोग या भक्तियोग का विवेचन करती है तो ये उसकी साधन-योग की व्याख्याएँ है । साधन अनेक हो सकते हैं ज्ञान, कर्म और भक्ति सभी साधन-योग हैं, साध्य-योग नहीं । लेकिन समत्वयोग साध्य-योग है। समदर्शी ही सच्चा योगी है । वह कर्म के विविध फलों के प्रति ही १. गीतारहस्य, पृ. ५७ २. गीतारहस्य, पृ. ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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