________________
समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि बाद कितनी बदल जाती है और विधवा होने के बाद सभी वस्त्र तथा आभूषणों को, मौज
और शौक को सर्प की केंचुली की भाँति उतार कर फेंक देने में एक क्षण की भी देर नहीं करती । भावनाओं के इतने परिवर्तनों का एक ही जीवन में अनुभव करना सामान्य बात नहीं है। संसार में यदि सचमुच कहीं जादू है तो वह स्त्री के हृदय में ही है । गाँधीजी कहते थे कि मेरे अन्दर स्त्री-हृदय है। इसीलिए उन्होंने स्त्री-विकास में काफी योग दिया। अनेक स्त्रियाँ अपना सुख-दु:ख नि:संकोच उनके सामने कह सकती थीं।
स्याद्वाद अथवा अनेकान्तवाद किसी भी विषय के दो अन्तों को छोड़कर शान्ति का मध्यम मार्ग ग्रहण करने का आदेश देता है।
स्याद्वाद का अर्थ यही है कि सद्गुण के अनेक रूप हैं । साधु की तपस्या, सती का सतीत्व, बालक की निर्दोषता, सुभट का शौर्य आदि सभी के लिए संसार में स्थान है। स्याद्वादी इन सभी का सम्मान कर सकता है । वह यदि निसर्गप्रेमी हो तो वर्षाकाल की वर्षा, शरद ऋतु की शीतलता और ग्रीष्मकाल का आतप इन सभी अवस्थाओं का आनन्द ले सकता है। क्योंकि वह समझता है कि प्राकृतिक रचना में इन सबको स्थान है, सभी का उपयोग है। इनमें से किसी भी ऋतु की विपरीतता से अन्य ऋतुएँ भी विकृत हो जाती हैं । जो कुछ अनुभव में आये उसके साथ समरस होने का प्रयास करना, यही स्याद्वाद की प्रवृत्ति का चिह्न है । स्याद्वादी अपने विरोधियों के कथन का उन्हीं की दृष्टि से आदर कर सकता है, यद्यपि वह उससे सर्वथा सम्मत न भी हो । दधि (दूधवाली) ढुलमुल नीति की निन्दा की जाती है, किन्तु वह सदैव के लिए अवगुण ही है ऐसा नहीं कहा जा सकता। दधि और दूध दोनों के गुण जाननेवाला यदि प्रकृति-भेद के कारण दधि नहीं खा सकता तो भी वह उसके गुण की उपेक्षा नहीं कर सकता । वह यह समझता है कि प्रत्येक वस्तु या कार्य अपने ही समुचित स्थल-काल-संयोग में सुशोभित होता है। यदि अनुचित कालादि संयोगों में रखा जाये तो निन्दापात्र, कुरूप या जुगुप्सित हो जाता है। इसीलिए “मैले" शब्द की व्याख्या की गई है - अस्थान में रखा हुआ पदार्थ । (Matter
misplaced is dirt) अतएव कोई भी वस्तु या कार्य स्वतंत्र रूप से असुन्दर या निरुपयोगी नहीं होता । त्याज्य मल भी जब जमीन में गाड़ा जाता है तब वह बहुमूल्य खाद के रूप में कृषि के लिए पुष्टिकारक पदार्थ बन जाता है।
__ अतएव ढुलमुल नीति जैसे छिछोरे आक्षेपों का जोखिम उठाकर भी स्याद्वाद सापेक्षवाद अर्थात् रिलेटिविटी का सिद्धान्त परस्पर विरुद्ध दीखनेवाली वस्तुओं का एकत्र-समर्थन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org