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समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि
जैन की तरह उसने भी जगत को सदसत् कहते हुएं यह समझाया कि न्यायी वृक्ष, पक्षी, अथवा मनुष्य आदि "हैं" और "नहीं हैं" अर्थात् एक दृष्टि से "हैं" और अन्य दृष्टि से “नहीं हैं” “अथवा " एक समय में " हैं" और दूसरे समय में नहीं हैं अथवा न्यून या अधिक हैं, अथवा परिवर्तन या विकास की क्रिया से गुजर रहे हैं। सत् और असत् दोनों के मिश्रण रूपसे हैं अथवा सत् और असत् के बीच में हैं।' उसकी व्याख्या के अनुसार नित्य वस्तु का आकलन अथवा पूर्ण - आकलन “ सायन्स" (विद्या) है और असत् अथवा अविद्यमान वस्तु का आकलन अथवा संपूर्ण अज्ञान " नेस्यन्स" (अविद्या) है, किन्तु इन्द्रियगोचर जगत् सत और असत् के बीच का है। इसीलिए उसका आकलन भी " सायन्स " तथा " नेस्यन्स" के बीच का है। इसके लिए उसने “ ओपिनियन " शब्द का प्रयोग किया है । उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि " नोलेज" का अर्थ पूर्ण ज्ञान है, और " ओपिनियन" का अर्थ अंश ज्ञान है। उसने “ ओपिनियन की व्याख्या " संभावना विषयक विश्वास" ( Trust in probabilities) भी की है - अर्थात् जिस व्यक्ति में अपने अंश-ज्ञान या अल्प ज्ञान का भान जगा हुआ होता है वह नम्रता से पद-पद पर कहता है कि ऐसा होना भी संभव है - मुझे ऐसा प्रतीत होता है । इसीलिए स्याद्वादी पद = पद पर अपने कथन को मर्यादित करता है । स्यादवादी जिद्दी की तरह यह नहीं कहता कि में ही सच्चा हूँ और बाकी झूठे हैं। लुई फिशर ने गाँधीजी का एक वाक्य लिखा है - "मैं स्वभाव से ही समझौता-पसन्द व्यक्ति हूँ क्योंकि मैं ही सच्चा हूँ ऐसा मुझे कभी विश्वास नहीं होता । " " ३
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इसलिए सभी धर्म और सभी दर्शन जैसा कि गाँधीजीने कहा है, सच तो हैं, किन्तु अधूरे हैं अर्थात् प्रत्येक में सत्य का न्यूनाधिक अंश है। किसी एक में सम्पूर्ण सत्य नहीं है। टेनिसन ने कहा है कि सभी धर्म और दर्शन ईश्वर के ही स्फुलिंग हैं किन्तु सत्यनारायण स्वयं उन सभी में बद्ध न होकर, उनसे दशांगुल ऊँचा ही रहता है । ४
"They are but broken dish of thee
And thou o Lord ! art More than they ""
१. एरिक लेअन - प्लेटो - पृ. ६०
२. वही, पृ. ६४
3. I am essentially a man of compromise because I am never sure I am right." - Louis Fischer - "The great Challenge"
4. ऋग्वेद १०-९-१
5. In Memoriam
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