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समत्व - योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक
१८७ संभव है कि निवृत्त धर्मप्रेमी गृहस्थ विधिपूर्वक एक ही साथ एक से भी अधिक सामायिक कर सकें। लेकिन जो व्यवसायी और व्यस्त गृहस्थ हो वे सुबह-शाम ही सामायिक कर सकें और इसी प्रकार सामायिक करने का भाव उत्पन्न हो इसलिए सामायिक की सरल और संक्षिप्त फिर भी उपयोगी क्रिया सहित विधि होनी चाहिए। कभी-कभी दो घड़ी का समय न भी हो और फिर भी सामायिक करने का उत्कट भाव हो तो क्या करना ?
श्री रत्नशेखरसूरि आदि पूर्वाचार्यों ने कहा है कि ऐसे संयोगों में करेमि भन्ते' के पाठ उच्चारण के बिना ही अपनी धारणा के मुताबिक सामायिक करना क्योंकि करेमि भन्ते' में गुरु भगवंत के प्रति जो आदरभाव है वह सुरक्षित रहना चाहिए । 'करेमि भन्ते' के पाठ उच्चारण के बाद उसकी प्रतिज्ञा विधि का अनादर न होना चाहिए। इसलिए करेमि भन्ते' के उच्चारण सहित विधिव्रत किया गया सामायिक तो अवश्य दो घड़ी का ही होना चाहिए।
गृहस्थों को सामायिक किस प्रकार करना चाहिए ? और कितने समय तक करना चाहिए ? शास्त्रकारों ने उसके वास्ते एक मुहूर्त अर्थात दो घड़ी का समय (४८ मिनट का समय) कहा है। दिन और रात्रि में जो काल व्यतीत होता है उसका विभाजन प्राचीन काल में मुहूर्त घड़ीका पल और विपल आदि में किया गया था । पुराणकाल में जो कालमापक प्रचलित थे उसमें कांच की घड़ी' भी थी। काँच के ऊपर के गोले में से सभी रेत नीचे रखे हुए गोले में गिर जाय इतने काल को घड़ी कहा जाता था। दो घड़ी मिलकर एक मुहूर्त जितना काल बनता । इस मुहूर्त का वर्तमान पर्याय ४८ मिनट होता है।
__ आगम ग्रंथों में गृहस्थों के सामायिक के लिए किसी निश्चित काल का निर्देश नहीं है। और 'करेमि भन्ते' सूत्र में जाव नियम' शब्द भी देखने मिलते हैं। उसका अर्थ होता है जब तक नियम अपनाया है तब तक । जब समयमापक उपकरण सुलभ न थे तब लोग निश्चित साया निश्चित स्थल तक पहुँचे तब तक अथवा दीप संपूर्ण रूप से जल रहे तब तक या ऐसे कोई चिह्न रखकर समय के नियम अपनाते थे। घड़ी का यंत्र प्रचलित होने के बाद उसका नियम लिया जाता था। भगवान महावीर के समय पश्चात् एक मुहूर्त अथवा दो घड़ी का निर्देश सामायिक के लिए दिखाई देता है । सामायिक में सावध योग का पच्चक्खाण लिया जाता है। अलग-अलग पच्चक्रवाण के अलग अलग कालमान होते हैं। सबसे छोटा पच्चक्खाण नवकारशी का है। उसमें समय निर्देश नहीं है। फिर भी परंपरा से इसकी काल-गणना एक मुहूर्त की की जाती है। उसी प्रकार सामायिक में भी कालनिर्देश नहीं है लेकिन परंपरा से वह एक मुहूर्त का माना जाता है।
सामायिक के काल संदर्भ में स्पष्टता करते हुए जिनलाभसूरिने आत्मप्रबोध' में लिखा है :
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