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समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि साधु भगवंतो के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों के पालन करने का आदेश दिया है। गृहस्थों के लिए भी इन व्रतों का आंशिकरूप से पालन करने का उपदेश दिया गया हैं । इसलिए अणुव्रत छोटे व्रत के रूप में उसकी पहचान दी गई है । इन अणुव्रतो का अच्छी तरह पालन हो सके इसलिए दूसरे तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत का पालन करने का आदेश भगवान ने दिया है। तीन गुणव्रत है : (१) दिक परिमाण व्रत (२) भोगोपभोग परिमाण व्रत और (३) अनर्थ दंड विरमण व्रत । चार शिक्षाव्रत है : (१) सामायिक व्रत
(२) देसावकासिक व्रत (३) पौषधव्रत और
(४) अतिथि संविभाग व्रत। इस प्रकार श्रावक के बारहव्रत बताये गये हैं। जो देशविरति श्रावक इन बारह व्रतो का दृढ रूप से पालन करता है वह साधु की कक्षा के निकट पहुंच जाता है। इन बारह व्रतो में नवाँ व्रत और शिक्षाव्रतों में पहला व्रत सामायिक व्रत है। यदि श्रावक सामायिक व्रत का यथा योग्य पालन करे तो वह उतना समय साधुत्व में प्रवेश करता है।
सामायिक शिक्षाव्रत है। शिक्षाका अर्थ है अभ्यास । 'धर्मबिन्दु' ग्रंथ में श्री हरिभद्रसूरि ने कहा है -
'साधु धर्माभ्यास शिक्षा।' इसका अर्थ यह होता है कि जिसमें अच्छा (साधु) धर्माभ्यास हो उसका नाम है शिक्षा । शिक्षाव्रत का अर्थ है पुनः पुन: अभ्यास का व्रत । श्रीहरिभद्रसूरि ने पंचाशक' में कहा है - . सिक्खावयं तु एत्थं सामाइयमो तयं तु विणेयं ।
सावजेयर जोगाण वजणा सेवणारूवं ॥ (यहाँ श्रावक-धर्म के सामायिक को शिक्षाव्रत रूप से जानना । सावध और इतर (अनवद्य) योगों का क्रमश: त्याग करना और सेवन करना । यह व्रत इस प्रकार का है।)
अभयदेवसूरि ने शिक्षा का अर्थ बोध करते हुए कहा है कि ग्रहण और सेवन रूपी परमपद साधक की जो चेष्टा है वही शिक्षा । जिस व्रत में ऐसी चेष्टा मुख्य रूप हो वह शिक्षाव्रत !
सामायिक शिक्षाव्रत है इसीलिए ही उसका पुन: पुन: आचरण करने का उपदेश दिया गया है। किसी भी कार्य को दुहराने से, उसके अधिक मुहावरे से वह अच्छे रूप से किया जाता
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