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समत्व - योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक 'वंदन' है।
(४) पडिकम्मामि.....पापों की निंदा, गर्हा की जाती है और पापों से मुक्त होने की, पापो से वापसी की क्रिया भी होती है उसमें प्रतिक्रमण है।
(५) अप्पाणं वोसिरामि..... पापों से मलित हुए - आत्मा को त्याग रहा हूँ । उसमें ‘कायोत्सर्ग' है । (६) सावजं जोग पच्चकरवामि उसमें ‘सावध योग का पच्चकरवाण है।
इसी प्रकार सामायिक, चतुर्विशतिस्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, काउसग्ग और पच्चकरवाण ये छ: आवश्यक किया करेमि भन्ते' सूत्र में समाविष्ट है।
इन छ: प्रकार की आवश्यक क्रियाओं से जीव को क्या क्या लाभ हात ह इसी विषयक प्रश्न भगवान महावीर से पूछे गये है। भगवान ने संक्षिप्त में उसके उत्तर दिये हैं।
उत्तराध्ययन सूत्र के २६ वे अध्ययन में भगवान से प्रश्न पूछा गया हैं :
सामाइएणं भन्ते जीवे किं जणइ ? (सामायिक करने से, भगवान ! जीव को क्या लाभ होता है ?)
भगवान का उत्तर है :सामाइएणं सावज्जोग विरइ जनयइ । (सामायिक करने से जीव सावधयोग से विरति पाता
यों सामायिक करने से, एक आसन पर निश्चित काल के लिए प्रतिक्षा पूर्वक बैठने से आराधक शरीर की अन्य प्रवृत्तियों से निवृत्त हो जाता है । उसके बाद मनसा वाचा स्थिर होकर आत्म हित के लिए जितनी देर तक वह अपने चित्त का अनुसंधान कर सकता है उतनी देर तक वह सावध (पाप रूप) योगों से निवृत्त हो जाता है । इसी द्रष्टिकोण से यदि देखा जाय तो सामायिक नये पाप रूप कर्मों को रोकने का प्रबल निमित्त बन सकता है ।
श्री हरिभद्रसूरि ने 'अष्टक प्रकरण' में सामायिक को 'मोक्षांग रूप' कहा है अर्थात् सामायिक मोक्ष का ही अंग है ऐसा परिचय सामायिक का दिया है।
सामायिक च.मोक्षागं परं सर्वज्ञ भाषितम ।
वासी चन्दन कल्पनामुक्तमेतन्मदात्मानाम् ॥ वासी चन्दनकल्प में वासी शब्द का अर्थ होता है वसूला । यह सुतार का एक साधन
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