________________
समत्व - योग प्राप्त करने की क्रिया - सामायिक
१६७
सामायिक । छः आवश्यक कर्तव्यों में प्रथम कर्तव्य सामायिक है। योग्य समय पर वह करना ही चाहिए । इसीलिए वह सामायिक कहा जाता है । यह उसकी विशेष व्याख्या है ।
इन सभी व्याख्याओं का निष्कर्ष यही है कि प्रत्येक व्याख्या में 'सम' पर अर्थात् समता पर भार दिया गया है । अतः सामायिक का भावार्थ होता है समता । राग-द्वेष रहित होकर, समता भाव को धारण कर आत्मस्वभाव में सम बनना, स्थिर रहना उसी का नाम है सामायिक | श्री हेमचन्द्राचार्य ने 'योगशास्त्र' में सामायिक के निम्नलिखित लक्षण बताये हैं :
त्यक्तार्तरौद्रध्यानस्य तक्त सावद्य कर्मणः ।
मुहूर्त समता या तां विदुः सामायिकम् व्रतम् ॥'
( आर्त और रौद्र ध्यान का और सावद्य कर्म का त्याग कर एक मुहूर्त तक समभाव में रहना उसे सामायिक व्रत कहा जाता है ।)
सावद्य कर्म मुक्तस्य दुर्ध्यान रहितस्य च । समभावो मुहूर्त तद्-व्रतं सामायिकाहवम् ॥`
( सावध कर्म से मुक्त होकर, आर्त और रौद्र जैसे दुर्ध्यान से रहित होकर मुहूर्त के लिए. भी समभाव का जो व्रत लिया जाता है उसे सामायिक कहा जाता है ।
:
अतः इन व्याख्याओं के बाद तीन महर्षियों ने सामायिक के जो लक्षण बताये हैं वे निम्न
प्रकार हैं
(१) सभी जीवों के प्रति समभाव रखना ।
(२) आर्त और रौद्र ध्यान का त्याग करना ।
(३) शुद्ध भावना अपनाना ।
(४) सावद्य योग से (पापमय प्रवृत्ति से) निवृत्त होना ।
(५) संयम धारण करना ।
(६) इस व्रत की आराधना कम से कम एक मुहूर्त (दो घड़ी अथवा ४८ मिनट) के लिए
करना ।
सामायिक का सबसे अधिक महत्त्व का लक्षण है समभाव- समता भाव' की उपलब्धि ।
१. सामाइयंति समभावलक्खणं ।
- विशेषा. भा. गा. ९०५
२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org