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________________ ( १४ ) अनेक विद्वानों के सहयोग से लिखा जाय। उसमें गहरे चिंतनपूर्वक समीक्षा कदाचित् संभव न हो तो भी अन्य का सामान्य विषय-परिचय दिया जाय जिससे कितने विषय के कौन से ग्रन्थ हैं-इसका तो पता विद्वानों को हो ही जायगा । और फिर जिज्ञासु विद्वान् अपनी रुचि के अन्य स्वयं पढ़ने लगेंगे। ___ इस विचार को स्व० डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने गति दी और यह निश्चय हुआ कि ई० सन् १९५३ में अहमदाबाद में होने वाले प्राच्य विद्या परिषद् के सम्मेलन के अवसर पर वहाँ विद्वानों की उपस्थिति होगी अतएव उस अवसर का लाभ उठाकर एक योजना विद्वानों के समक्ष रखी जाय। इसी विचार से योजना का पूर्वरूप वाराणसी में तैयार कर लिया गया और अहमदाबाद में उपस्थित निम्न विद्वानों के परामर्श से उसको अन्तिम रूप दिया गया :१. मुनि श्री पुण्यविजयजी २. आचार्य जिनविजयजी ३. पं० सुखलालजी संघवी ४. पं० बेचरदासजी दोशी ५. डा० वासुदेवशरण अग्रवाल ६. डा० ए० एन० उपाध्ये ७. डा० पी० एल० वैद्य ८. डा० मोतीचन्द ६. श्री अगरचन्द नाहटा १०. डा० भोगीलाल सांडेसरा ११. डा० प्रबोध पण्डित १२. डा० इन्द्रचन्द्र शास्त्री १३. प्रो० पद्मनाभ जैनी १४. श्री बालाभाई वीरचंद देसाई जयभिक्खु १५. श्री परमानन्द कुवरजी कापड़िया यहाँ यह भी बताना जरूरी है कि वाराणसी में योजना संबंधी विचार जब चल रहा था तब उसमें संपूर्ण सहयोग श्री पं० महेन्द्रकुमारजी का था और उन्हीं की प्रेरणा से पंडितद्वय श्री कैलाशचन्द्रजी शास्त्री तथा श्री फूलचन्द्रजी शास्त्री भी सहयोग देने को तैयार हो गये थे। किन्तु योजना का पूर्वरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002543
Book TitleJain Sahitya ka Bruhad Itihas Prastavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size2 MB
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