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( ६४ ) पूज्यपादकृत सर्वार्थसिद्धि ग्रन्य में इस विषय में जो लिखा है वह इस प्रकार है-"तत्र सर्वज्ञेन परमर्षिणा परमाचिन्त्यकेवलज्ञानविभूतिविशेषेण अर्थत आगम उद्दिष्टः ।"तस्य साक्षात् शिष्यैः बुद्धयतिशयद्धियुक्तः गणधरैः श्रुतकेवलिभिरनुस्मृतग्रन्यरचनम्-अङ्गपूर्वलक्षणम् ।''--सवोर्थसिद्धि १.२० ।।
स्पष्ट है कि पूज्यपाद के समय तक ग्रन्यरचना के विषय में श्वेताम्बरदिगंबर में कोई मतभेद नहीं है। यह भी स्पष्ट है कि केवल एक ही गणधर सूत्र रचना नहीं करते किन्तु अनेक गणधर सूत्ररचना करते हैं। पूज्यपाद को तो यही परंपरा मान्य है जो श्वेताम्बरों के संमत अनुयोग में दी गई है यह स्पष्ट है। इसी परंपरा का समर्थन प्राचार्य अकलंक और विद्यानन्द ने भी किया है___ "बुद्धयतिशद्धि युक्तैर्गणधरैः अनुस्मृतग्रन्यरचनम्-प्राचारादिद्वादशविधमङ्गप्रविष्टमुच्यते ।"--राजवार्तिक १. २०. १२, पृ० ७२ । "तस्याप्यर्थतः सर्वज्ञवोतरागप्रणेतृकत्वसिद्धः, 'अहंद्भाषितार्थं गणधरदेवैः प्रथितम्' इति वचनात् ।" तत्वार्थश्लोकवार्तिक पृ० ६; "द्रव्यश्रुतं हि द्वादशाङ्गं वचनात्मकमाप्तोपदेशरूपमेव, तदर्थज्ञानं तु भावश्रुतम्, तदुभयमपि गणधरदेवानां भगवदहत्सर्वज्ञवचनातिशयप्रसादात् स्वमतिश्रुतज्ञानावरणवीयोन्तरायक्षयोपशमातिशयाच उत्पद्यमानं कथमाप्तायत्तं न भवेत् ?' वही पृ०१।
__ इस तरह आचार्य पूज्यपाद, आचार्य अकलंक और आचार्य विद्यानन्द ये सभी दिगंबर प्राचार्य स्पष्ट रूप से मानते हैं कि सभी गणधर सूत्र-रचना करते हैं।
ऐसी परिस्थिति में इन प्राचार्यों के मत के अनुसार यही फलित होता है कि गौतम गणधर ने और अन्य सुधर्मा आदि ने भी ग्रन्थरचना की थी। केवल गौतम ने ही ग्रन्यरचना की हो और सुधर्मा आदि ने न की हो यह फलित नहीं होता। यह परिस्थिति विद्यानन्द तक तो मान्य थी ऐसा प्रतीत होता है । ऐसा ही मत श्वेताम्बरों का भी है।
पं० कैलाशचन्द्र ने यह लिखा है कि "हमने इस बात को खोजना चाहा कि जैसे दिगंबर परंपरा के अनुसार प्रधान गणधर गौतम ने महावीर की देशना को अंगों में गूथा वैसे श्वेताम्बर परंपरा के अनुसार महावीर की वाणी को सुनकर उसे अंगों में किसने निबद्ध किया ? किन्तु खोजने पर भी हमें किसी खास गणधर का निर्देश इस संबंध में नहीं मिला।"--पीठिका पृ० ५३० ।।
इस विषम में प्रथम यह बता देना जरूरी है कि यहाँ पं० कैलाशचन्द्रजी यह बात 'केवल गौतम ने ही अंगरचना की थी'-इस मन्तव्य को मानकर ही
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