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जैसा सुना वैसा अर्थ सूत्र रूप में फरमाते हैं- “सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं' (हे आयुष्मन् (जम्बू) मैंने सुना है, उन भगवान (महावीर) के द्वारा इस प्रकार कहा गया है)
आगमों के वर्गीकरण को लेकर अब तक चार रूप प्राप्त होते हैं। सबसे प्राचीन रूप समवायांग सूत्र में दृष्टिगोचर होता है, जिसके अनुसार आगमों को पूर्व
और अंग के रूप में विभक्त किया गया है। पूर्वो की संख्या चौदह एवं अंगों की संख्या बारह बताते हुए उनके नाम भी दिए गए हैं। (द्रष्टव्य समवायांग, समवाय १४ एवं गणिपिटक वर्णन) दूसरा वर्गीकरण नन्दिसूत्र में उपलब्ध होता है, जिसके अनुसार आगमों को अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य भेदों में विभक्त किया गया है- अहवा तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तंजहा अंगपविट्ठं अंगबाहिरं च (नंदीसूत्र, ४३)। तृतीय वर्गीकरण चार अनुयोगों के रूप में प्राप्त होता है, जिसके अनुसार समस्त आगम चार अनुयोगों में समाविष्ट हो जाते हैं। चार अनुयोग हैं- १. चरणकरणानुयोग २. धर्मकथानुयोग ३. गणितानुयोग ४. द्रव्यानुयोग। यह वर्गीकरण आर्यरक्षित द्वारा किये जाने का उल्लेख मिलता है। दिगम्बर परम्परा में चार अनुयोगों के नाम इस प्रकार हैं- १. प्रथमानुयोग २. करणानुयोग ३. चरणानुयोग और ४. द्रव्यानुयोग। आगमों के चौथे वर्गीकरण में इन्हें अंग, उपांग, मूल और छेद सूत्रों में विभक्त किया गया है। पहले अंगसूत्रों के अतिरिक्त सभी सूत्र अंगबाह्य में सम्मिलित होते थे, किन्तु उपांग
आदि के रूप में विभाजन होने पर यह ही वर्गीकरण अधिक प्रचलन में आ गया। विक्रम संवत् १३३४ में निर्मित प्रभावक चरित में अंग, उपांग, मूल और छेद के विभाजन का स्पष्ट उल्लेख मिलता है
ततश्चतुर्विधः कार्योऽनुयोगोऽतः परं मया। ततोऽङ्गोपाङ्गमूलाख्यग्रन्थच्छेदकृतागमः ।।
-प्रभावकचरितम्, 24 इसके अनन्तर उपाध्याय समयसुन्दरगणि विरचित 'समाचारी शतक' में भी इस विभाजन का उल्लेख मिलता है। प्रकीर्णक शब्द का प्रयोग अपेक्षाकृत प्राचीन है, जिसे आगम की चार विधाओं से पृथक् माना जाता है।
वर्तमान में स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय ३२ आगमों को मान्य करते हैं तथा श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के अनुसार ४५ आगम मान्य हैं। मूर्तिपूजकों के मत में ८४ आगम भी मान्य रहे हैं।
स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय में ३२ आगमों की गणना इस प्रकार
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