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वास्तव में अनुप्रेक्षा इन दोनों का यथायोग्य स्वरूप तथा उनसे संवर, निर्जरा एवं मोक्ष रूप लाभ कैसे प्राप्त हो सकता है। इसे भली-भांति निश्चय एवं व्यवहार इन दोनों दृष्टियों से समझना आवश्यक है। वास्तव में अनुप्रेक्षा के द्वारा सत्य तथ्य का बार-बार अनुचिन्तन करने से मन पर जमी हुई भ्रान्तियों, विपर्ययों एवं दुराग्रहों के मैल को काटा जा सकता है, तोड़ा जा सकता है। अनुप्रेक्षक व्यक्ति अपनी पूर्वकालीन धारणाएँ, मान्यताएँ और पूर्वाग्रह की दृष्टि से अथवा काल्पनिक दृष्टिकोण से नहीं देखता । अपितु यथार्थ को, सत्य तथ्य को और वास्तविकता को देखता है। मानव के समक्ष सबसे बड़ी समस्या यह है कि मनुष्य जो वस्तु तत्त्व है अथवा सत्य तथ्य है उस दृष्टि से न देखकर अपनी धारणा और मान्तया का रंगीन उपनेत्र लगाकर उसी दृष्टि से देखता है, सोचता है। इसीलिये स्पष्ट भाषा में यह उल्लेख प्राप्त होता है कि अपनी आत्मा से अपनी आत्मा का सम्प्रेक्षण करो, अपनी आत्मा से सत्य का अन्वेषण करो। इसका तात्पर्य भी यही है कि अनुप्रेक्षा के माध्यम से सत्य को देखने और सोचने के लिये- सत्य के प्रति समग्रतः समर्पित हो जाओ। जो सत्य तथ्य है, उसे स्वीकार करो। तभी मानने की भूमिका से ऊपर उठकर अनुप्रेक्षक साधक जानने की भूमिका पर पहुँचता है। निष्कर्ष यह है कि अनुप्रेक्षा आध्यात्मिक रसायन है। जो साधक इस रसायन से पूर्णतः भावित हो जाता है वह भव रूपी कारागृह से सर्वथारूपेण मुक्त हो जाता है।
२०. कर्म
'कम्म' प्राकृत भाषा का एक महत्त्वपूर्ण शब्द है। जैन आगम - साहित्य में 'कम्म' शब्द का प्रचुर प्रयोग विविध संदर्भों में हुआ है।" 'कम्म' का संस्कृत रूपान्तर 'कर्म' निष्पन्न होता है। 'डुकुञ्' करणे धातु से 'कर्म' शब्द की रचना हुई है। कर्म शब्द आगमीय शब्द है, पारिभाषिक शब्द है और यह शब्द वास्तव में ऐसा विलक्षण शब्द है कि वह अपने आप में अनेक अर्थो को समग्र रूपेण समाहित किये हुए है। यह सत्यपूर्ण तथ्य है कि शब्द की एक सीमा होती है। शब्द में अनेक अर्थ और अनेक आशय सन्निहित होते हैं। उसके अनेक अर्थों एवं अनेक आशयों को विविध संदर्भों से ही जाना जाता है। कर्म शब्द जब-जब भी प्रयुक्त हुआ है तब-तब वह अपने व्यक्तित्व और व्यापकत्व की छटा निश्चित रूपेण दिखलाता है । 'कर्म' शब्द का सामान्यतः अर्थ कार्य, क्रिया, कर्त्तव्य और परिणति होता है। कार्य अथवा कर्त्तव्य की अपने कोई आकृति नहीं है, किन्तु जब वह अध्यात्म के क्षेत्र में, देह में विदेह को प्राप्त करने के आशय से प्रयुक्त होता है, तब उसकी एक ठोस आकृति होती है। यह
स्वाध्याय शिक्षा
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