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________________ वस्तुएँ भी सम्प्राप्त हो जाती हैं और उसका जल भी क्षारपूर्ण है, किन्तु आगम सागर में मुक्ता ही मुक्ता हैं, क्षीर ही क्षीर है। यह क्षीर सुधा सा माधुर्य पूर्ण है, जीवनदायक है। जो भी इसमें निरन्तर अवगाहन करता है, इसका मन्थन करता है, वह रिक्त हस्त नहीं होता। ज्ञान-विज्ञान का दिव्यरत्न अथवा पारिभाषिक शब्दों की मणि मुक्ता निश्चित रूपेण प्राप्त कर लेता है। मैं स्वयं भी एक अतीव सामान्य सा अवगाहक हूँ, छोटा सा गोताखोर हूँ। अवगाहन करना अथवा मन्थन करना मेरा व्यवसाय नहीं है, व्यसन है। जीवन के निर्णीत संलक्ष्यों में एक लक्ष्य है। एतदर्थ जब-तब भी अवकाश के पुण्य पल प्राप्त हुए, आगम सागर का मन्थन कर लेता हूँ। प्रस्तुत निबन्ध की परिधि में आगमीय शब्दावली में से कतिपय शब्दों की मुक्ता एकत्र करना मेरा अभिप्रेत लक्ष्य बिन्दु है। शाब्दिक मुक्ताओं की जो अर्थ आत्मा है, तद् विषयक विचारणा और विमर्शना संप्रस्तुत की जा रही है। जो शब्दगत अर्थ ज्योति अनावृत्त करेगा उसे यह आर्थिक आलोक वस्तुवृत्त्या ज्ञानवृद्धि और विषय स्पष्टता में सहायक हो सकेगा और शब्दों की लाक्षणिकता एवं वैज्ञानिकता भी सहन किरण दिनकर के सदृश प्रदीप्तिमान होगी, इस कथन में अणुमात्र भी अतिशयपूर्ण उक्ति नहीं, अपितु समग्रतः यथार्थता है। यहाँ पर आगम में प्रयुक्त कतिपय शब्दों पर विचार किया जा रहा है। 09. आगम आगम शब्द 'आ(आङ्)' उपसर्ग पुरस्सर 'गम्' धातु से निष्पन्न हुआ है। 'आ' उपसर्ग का अर्थ 'समन्तात्' है अर्थात् पूर्ण है तथा 'गम्' धातु का अर्थ 'गतिप्राप्ति' है। आगम शब्द की बहुविध परिभाषा है। जो गुरु परम्परा से अविच्छिन्न गति से आ रहा है तथा जिसके माध्यम से सब ओर से जीव-अजीव प्रभृति पदार्थों को जाना जाता है वह आगम कहलाता है।' जो तत्त्व आचार-परम्परा से वासित होकर आता है वह आगम कहलाता है। जिसके द्वारा सही शिक्षा प्राप्त होती है, विशेष ज्ञान उपलब्ध होता है, वह शास्त्र ‘आगम' कहलाता है। तथ्य यह है कि 'आगम' शब्द समग्र श्रुति का परिचायक है। सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धान्त, प्रवचन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापन, आप्तवचन, ऐतिह्य, आम्नाय, जिनवचन और श्रुत ये सर्व शब्द आगम के पर्यायवाची हैं। वास्तव में 'आगम' शब्द शास्त्र के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। जहाँ आगम व्यवहार का वर्णन हुआ है, वहाँ उसके प्रत्यक्ष एवं परोक्ष इन दो भेदों का प्रतिपादन भी स्पष्टतः हुआ है। एक अपर विवक्षा के आधार पर आगम का - 126 126 - स्वाध्याय शिक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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