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________________ का रचयिता नहीं, संकलनकर्ता स्वीकार किया है, क्योंकि दशाश्रुतस्कन्ध की विषयवस्तु विभिन्न आगमों से मेल खाती है। यहां पर कुछ आगमों के साथ तुलना प्रस्तुत की जा रही है। समवायांग और दशाश्रुतस्कन्ध- इसमें प्रायः बहुत सा भाग समवायांग सूत्र से केवल कुछ ही परिवर्तन के साथ लिया गया है। जैसे-पहली दशा में बीस असमाधि स्थानों का वर्णन है, वैसा ही वर्णन 'समवायांग सूत्र' के बीसवें स्थान में सूत्र रूप में उद्धृत है। भेद केवल इतना ही है कि 'समवायांग सूत्र' के 'बीसं असमाहिट्ठाणा पण्णत्ता तंजहा' इतना ही पाठ देकर असमाधि स्थानों का वर्णन प्रारम्भ कर दिया गया है। किसी-किसी जगह पर स्थान परिवर्तन भी कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त और कोई भेद इनमें नहीं मिलता। दूसरी दशा के इक्कीस शबल दोष भी समवायांग सूत्र से ही ज्यों के त्यों उद्धृत कर दिए हैं। भेद केवल पहली दशा के समान भूमिकावाक्य में ही है। तीसरी दशा की आशातनाएँ भी इसी सूत्र में उक्त रूप से ली गई हैं। पांचवीं दशा में दस चित्त समाधियों का वर्णन है। इन चित्त समाधियों का गद्य रूप पाठ समवायांग सूत्र के दसवें स्थान से उद्धृत किया गया है। छठी दशा में श्रमणोपासक की ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन आता है। इनका सूत्ररूप मूल पाठ समवायांग सूत्र के ग्यारहवें स्थान के समकक्ष है। सातवीं दशा का मूल समवायांग के बारहवें स्थान के समान है। नवमी दशा के तीस महामोहनीय स्थानों का पद्यरूप वर्णन समवायांग सूत्र के तीसवें स्थान में उद्धृत पद्य से मिलता-जुलता है। स्थानांग और दशाश्रुतस्कन्ध- दशाश्रुतस्कन्ध की चौथी दशा में आठ प्रकार : की गणिसम्पत् का वर्णन है। इस प्रकार की आठ गणिसम्पत् का नाम निर्देश : 'स्थानांग सूत्र' के आठवें स्थान में भी मिलता है। सातवीं दशा के अन्तर्गत भिक्षु . प्रतिमाओं की विस्तृत व्याख्या की गई है। उसी के समान स्थानांग सूत्र के तीसरे स्थान में भी मिलती है। श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पांच कल्याणकों का वर्णन आठवी दशा में है। इस दशा के मूल सूत्र में और स्थानांग सूत्र के पंचम स्थान के प्रथमोद्देश में समरूपता है। औपपातिक और दशाश्रुतस्कन्ध- दशाश्रुतस्कन्ध की पाँचवीं दशा का उपोद्घात भाग और नवमी दशा का उपोद्घात भाग औपपातिक सूत्र में भी मिलता है। दसवीं दशा में निरूपित निदान कर्मों का भी कुछ भाग औपपातिक सूत्र के समान - स्वाध्याय शिक्षा - 117 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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