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05. वही-1.24-25 06. उत्तराध्ययन टीका 13, पृ.185-अ 07. वही 6, पृ. 136 08. आवश्यकचूर्णि 2, पृ. 161 09. उत्तराध्ययन टीका 18, पृ. 253 10. स्थानांग 7, पृ. 372, अनुयोग द्वार पृ. 117 11. स्थानांग 7, पृ. 372-अ 12. वही 13. वही 14. वही 15. वही 16. वही 17. वही 4, पृ. 271-अ 18. यह बायें हाथ से पकड़कर दायें हाथ से बजाई जाती है- शांर्गधर-संगीत रत्नाकर
6,1237 19. देवालयों में बजाया जाने वाला मंगल एवं विजय सूचक वाद्ययंत्रा-वही 6,1146 20. गोपुच्छाकृति मृदंग जो एक सिरे पर चौड़ा और दूसरे पर संकड़ा होता है
वासुदेवशरण अग्रवाल, हर्षचरित, पृ. 67 21. संगीतरत्नाकर, 1034 22. इसे आवाज अथवा स्कन्धावज भी कहा जाता है।-संगीतरत्नाकर 1075 23. संगीतरत्नाकर 1076 24. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति पृ. 101 25. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र 64. पृ. 101 26. मूलभेदापेक्षया आतोद्यभेदा एकोनपंचाशत् शेषास्तु एतेषु एव ।
अन्तर्भवन्ति, यथा वंशातोद्यविधाने वालीवेणुपिरिलिबद्धगाः इति ।-राजप्रश्नीय
सटीक,पृ.128 27. आचारांग 2.11, 391 पृ. 371 28. सूत्रकृतांग 4.2.7 29. भगवती सूत्र टीका-5.4, पृ. 216-अ 30. जीवाभिगम 3, पृ. 145-अ 31. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-2, पृ. 100-अ 32. निशीथ सूत्र 17.135-138 33. बृहत्कल्पभाष्यपीठिका-24 वृत्ति 34. रामायण-5.10.38 35. महाभारत-7.82.4 36. भरतनाट्य-33.15 37. वही-29.114 38. प्राचीन भारत के वाद्ययन्त्र-कल्याण (हिन्दूसस्कृति अंक) पृ. 721-722
स्वाध्याय शिक्षा
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