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चेतना !
चरित्र !!
एकता !!!
अखिल भारतीय साहित्य कला मंच
स्थापना
'अखिल भारतीय साहित्य कला मंच' की अपनी साहित्यिक गतिविधियों, अपने अनेक प्रकाशनों तथा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के अपने पारदर्शी उद्देश्यों के कारण भले ही दशकों पुराना-सा लगे किन्तु अपनी उम्र से बहुत बड़ा-सा लगने वाले इस मंच की उम्र मात्र 18 वर्ष है। वर्ष 1988 में 4 मार्च को मंच के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. महेश 'दिवाकर' डी0 लिटल (हिन्दी), अध्यक्ष व रीडर, हिन्दी विभाग, गुलाब सिंह हिन्दू (स्नातकोत्तर) महाविद्यालय, चाँदपुर (बिजनौर) के आवास पर आयोजित गोष्ठी में यह मंच वैचारिक स्तर पर अस्तित्व में आया। मंच ने अपनी यात्रा 'नवजात साहित्यकार मंच' के नाम से आरम्भ की। आरम्भ में इसका स्वरुप और क्षेत्र केवल चाँदपुर तक सीमित था। कुछ ही समय में जनपद की सीमाएँ पार कर इसने कई प्रान्तों के सुधी पाठकों/साहित्यकारों को अपनी निजता का परिचय दिया। विस्तृत स्वरुप व क्षेत्र के अनुरुप कुछ परिवर्तन के साथ मंच को 1992 में 'साहित्य कला मंच' नाम दिया गया। मंच के साहित्यिक कार्यों में निरन्तर फैलाव होता रहा। अपने आरम्भ से मंच ने अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किए। अनेक काव्य संकलनों व अन्य साहित्यिक ग्रंथों का प्रकाशन किया। अखिल भारतीय स्तर पर साहित्यिक प्रतियोगिताएं आयोजित की गई। कुछ प्रमुख पत्रिकाओं में साहित्यकारों . के विशेषांक प्रकाशित कराये गये। मंच की ओर से अब तक अनेक काव्य-संकलनों और ग्रंथों का प्रकाशन व सम्पादन किया गया। वस्तुतः इन्हीं कुछ उपलब्धियों के कारण 'साहित्य कला मंच' ने भारत के लगभग हर प्रदेश को सुवासित किया है। फलतः 'कार्यकारिणी' ने अपने साहित्यकारों के परामर्श पर वर्ष 1996 में इसका स्वरुप 'अखिल भारतीय साहित्य कला मंच' कर दिया। साथ ही 'मंच' ने बरेली, मेरठ, फैजाबाद, नैमिषारण्य, लखनऊ, सुल्तानपुर, गाजियाबाद, प्रयाग आदि नगरों में अपनी शाखाएँ स्थापित की है, और यह विस्तार निरन्तर जारी है।
___ आश्चर्य जनक लग सकता है किन्तु यह सत्य है कि 'अखिल भारतीय साहित्य कला मंच' ही सम्भवतः एक मात्र ऐसा साहित्यिक मंच है कि जिसका अभी तक कोई भी मासिक, वार्षिक अथवा अन्य किसी प्रकार का सदस्यता शुल्क नहीं है। साहित्य के प्रति सहृदयता और राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति आपकी सच्ची निष्ठा ही इसकी प्रतीकात्मक सदस्यता रही है। 'मंच' के द्वारा आयोजित किए जाने वाले साहित्यिक-समारोहों/आयोजनों
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