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________________ परिशिष्ट ग्रंथ म त्यवहत जैनधर्म की पारिभाषिक शब्दावली ॐ 1. अकृत्रिम चैत्य एवं चैत्यालय- अकृत्रिम अनादि अनिघन देव प्रतिमाएं तथा देव मंदिर। 2. अधातिया कर्म- अष्टकर्मों में से चार कर्मों- आयु, नाम, गोत्र, वेदनीय का समूह। ये कर्म आत्मा के स्वरूप का किचित घात करते हैं। __ अढ़ाई द्वीप- मध्य लोक में जम्बूद्वीप, धातकी खंड द्वीप तथा अर्द्ध पुष्कर द्वीप पर्यन्त अढाई द्वीप कहलाता है। इसमें ही मनुष्य की गति है इससे बाहर नहीं है इसीलिए इसे मनुष्य लोक भी कहते हैं। 4. अणुव्रत- गृहस्थ के लिए हिंसा, असत्य, स्तय (चारी) अब्रह्मचर्य तथा परिग्रह इन पाँच पापों का यथासम्भव त्याग अणुव्रत कहलाता है तथा इनका पूर्णत: त्याग ही महाव्रत कहलाता है। 5. अनन्त चतुष्टय- अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख, अनन्तवीर्य- ये चार गुण केवली अरहंत भगवान के प्रकट होते हैं। अनायतन- (षट अनायतन)- मिथ्यादर्शन आदि के आधार अनायतन हैं जो छः माने गये हैं- कुदेव, कुगुरू, कुधर्म तथा इन तीनों के सेवक। 7. अन्तराय- विघ्न। मुनि के आहार सम्बन्धी विध्न जिनके घटित होने पर मुनि आहार ग्रहण नहीं करते। 8. अनुप्रेक्षा- वैराग्यभाव लाने के लिये जिन भावनाओं का बार-बार चिन्तन किया जाये उन्हीं 12 भावनाओं को अनुप्रेक्षाएं कहते हैं, वे इस प्रकार हैं: 1. अनित्य, 2. अशरण, 3. संसार, 4. एकत्व, 5. अन्यत्व, 6. अशुचि, 7. आम्रव, 8. संवर, 9. निर्जरा, 10. लोक, 11. बोधिदुर्लभ, 12. धर्म। 9. अभव्य- जिन जीवों में संसार से मुक्त होने की योग्यता नहीं होती वे जीव अभव्य कहलाते हैं। 10. अरहंत- परमेष्ठी के पाँच भेदों में से एक भेद। चार घातिया कर्मरूपी अरि को नष्ट करने के कारण ये अरिहंत अथवा अरहंत कहलाते हैं। ये ही सकल परमात्मा हैं। (211) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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