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ध्यान का लक्ष्य - लब्धियाँ एवं मोक्ष (२३८)
का भेदन करता है । ÷ महर्षि पतञ्जलि के अनुसार जीवात्मा का सृष्टि के साथ कर्ता एवं भोक्ता का सम्बन्ध, या पुरुष एवं प्रकृति का सयोग ही दुख का कारण है..., एवं पुरुष व मन के संयोग का कारण अविद्या है X और इस अविद्या का बन्धन केवल योग के अनेक उपायों में से ही टूटता है । जब मुनि अपनी सभी वासनाओं एवं कर्मों की निर्जरा या क्षय कर देते हैं तब उनको कैवल्य की प्राप्ति होती है । यह कैवल्य वाणी एवं मन से अगोचर है। 4 अभीप्सित मोक्ष तो जीव और ब्रह्म के एक्य को समझ लेने पर इसी जीवन में मिल जाता है, जो इस बात को जान लेता है कि 'मैं तो ब्रह्म हूँ' ब्रह्माण्ड बन जाता है । स्वयं देवता भी ऐसा बन जाने से नहीं रोक सकते, क्योंकि वही तो इस विश्व की आत्मा है । + अथवा फिर मुण्डक के शब्दों में 'जो परब्रह्म को जान लेता है वही स्वयं ब्रह्म बन जाता है ।' इस तथ्य का निराज्ञान ही मोक्ष है, ऐसा योगी सब प्रकार की ईहा एवं एषणाओं से परे पहुँच जाता है, उसके पुण्य एवं पापों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
बौद्ध परम्परा में निर्वाण :
बौद्ध मत में यह जगत् एक कोरी यन्त्रणा है, और मानव का परम पुरुषार्थ उस इच्छा को नष्ट करके, जो कि उसे एक जन्म
: (क) ध्यानबिन्दूपनिषद् ६५-६६
(ख) योगचूडामण्युपनिषद् ३६-४४
... योगदर्शन २/१७
X तस्यहेतुरविद्या । ( योगदर्शन २ / २४ )
* वासना प्रक्षयो मोक्षः सा जीवन्मुक्तिरिष्यते । विवेकचूड़ामणि ३१८ ) 4 यतो वाचो निवर्त्तन्ते अप्राप्य मनसा सह ।
आनन्दं ब्रह्मणो विद्वान् न बिभेति कुतश्चनेति ॥ । तैत्तिरीयोपनिषद् २/४ / १)
5 गौडपाद : माण्डूक्य कारिका ४.६८
+ वृहदारण्यक उपनिषद् १/४/१० वही ३/२/६