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________________ ध्यान का लक्ष्य-लब्धियाँ एवम् मोक्ष(२३६) जलने से उनकी रक्षा करना इस लब्धि के गुण हैं । यह लब्धि तेजोलब्धि से विपरीत स्वभाव वाली होती है। २६ वैक्रियल ब्धि : इस लब्धि के प्रभाव से साधक अपने शरीर को छोटा-बड़ा, भारीहल्का कर सकता है। २७-अक्षीणमहानसल ब्धि : इस लधि के द्वारा साधक एक साथ ही हजारों व्यक्तियों को एक पात्र में से ही भोजन करा सकता है। फिर भी उस पात्र का भोजन तब तक समाप्त नहीं होता है जब तक वह मुनि स्वयं भोजन न कर ले । २८-पुलाक लब्धि : इस लब्धि की प्राप्ति करके अगर साधक चाहे तो वह चऋवर्ती सेना को भी पराजित कर सकता है लेकिन उसकी यह शक्ति अदृश्य होती है। इन लब्धियों का विवेचन प्रवचनसारोद्वार के अनुसार किया गया है। इन लब्धियों को तीन भेदों में बाँटा गया है-१-ज्ञान लब्धियाँ, २-शरीर लब्धियाँ, तथा ३-पद लब्धियाँ । ज्ञान लब्धियों के अन्तर्गत अवधि लब्धि, ऋजुमति लब्धि, विपुलमति लब्धि, केवल लब्धि, कोष्ठक लब्धि, पदानुसारिणी लब्धि, तथा बीजबद्धि लब्धि आती हैं। __शरीर लब्धियाँ इस प्रकार से हैं-आमोसहि, विप्पोसहि, खेलोसहि, जल्लोसहि, सव्वोसहि, संभिन्नस्त्रोत, चारण लब्धि, आशीविष लब्धि, क्षीरमधुसर्पिरास्त्रवलब्धि, तेजोलब्धि , आहारकलब्धि, शीतललेश्यालब्धि, वैक्रियल ब्धि, अक्षीणमहानसलब्धि तथा पुलाकलब्धि । पद लब्धियों के अन्तर्गत-गणधर लब्धि, पूर्वधर लब्धि, अर्हत लब्धि, चक्रवर्ती लब्धि, बलदेव लब्धि, वासुदेव लब्धि आती है। ये सभी लब्धियाँ योगी को संयम एवं साधना से ही प्राप्त होती हैं । जब भी योगी इन लब्धियों का प्रयोग करता है तभी जन साधारण को इनकी एवं योगी की सम्पन्नता का पता चलता है
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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