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तेत्तीसुदही आउंमि केवला होइ एवमुक्कोसा। मूल पयडीण इत्तो ठिई जहन्ना निसामेह ॥ ५३॥ मूलठिईण जहणणो सत्तण्हं साइयाइओ बन्धो। सेप्सतिगे दुविगप्पो आउचउक्केवि दुविगप्पो ॥ ५४ ॥ थट्ठारस पयडीणं अजहन्नो बन्ध चउविगप्पो उ। साइ अ अधुवबन्धो सेसतिगे होइ बोधव्वो ॥५५॥ उक्कोसाणुकोसो जहन्नमजहन्नगो य ठिइबन्धो। साईयाधुवबन्धो सेसाणं होइ पयडीणं ॥ ५६ ॥ सव्वासिपि ठिईओ सुभासुभाणं पि हेांति असुभाओ माणुसतिरिक्खदेवाउयं च मोत्तण सेसाणं ॥ ५७ ॥ सव्वहिइणमुक्कोसगो उ उक्कोससंकिलेसेगं। विवरीए उ जहन्नो आउगतिगवज्जसेसाणं ॥ ५८ ॥ सव्वुकोसठिईणं मिच्छदिट्ठी उ बन्धगो भणिओ। आहारगतित्थयरं देवाउं वावि मोत्तूणं ॥ ५९॥ देवाउयं पमत्तो आहारगमप्पमत्तविरको उ। तित्थयरं च मणसो अविरयसम्मो समज्जेइ ॥६० ॥ पन्नरसण्हं ठिइमुक्कोसं बन्धंति मणुयतेरिच्छा।
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