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दंतट्ठाइथिराणं, अंगावयवाण जस्स उदएं । निप्पत्ती उ सरीरे, जायइ तं होइ थिरनामं ॥ १४० ॥ जीहाभमुहाईणं, अंगावयवाप जस्स उदरणं । निष्पत्ती उ सरीरे, जायइ तं अथिरनामं तु ॥ १४१ ॥ सिरमाईण सुहाणं, अंगावयवाण जस्स उदए । निष्पत्ती उ सरीरे, जायइ तं होइ सुभनामं ॥१४२॥ पायाई असुहाणं, अंगावयवाण जस्स उदए । निष्पत्ती उ सरीरे, जायइ तं असुभनामं तु ॥ १४३ ॥ सूभगकम्मुदपणं, हवइ हु जीवो उ सबजणइट्टो | दूहगकम्मुदए पुण, दुहओ सो सयललोयस्स ॥१४४॥ सूसर कम्मुदपणं, सूसरसहो य होइ इह जीवो । दूसर उदए विसरो, जंपतो होइ जणवेसो ॥१४५॥ आएज्जकम्मउदए, चिट्ठा जीवाण भासणं जं च । तं बहु मन्नइ लोखो, अबहुमयं इयर उदपणं ॥ १४६ ॥ जस्सुदपणं जीवो, लहइ हु कित्तिं जसं च लोगम्मि | तं जसनामं कम्मं; अजसुदए लहइ विवरीयं ॥ १४७ ॥ देहंगावयवाणं, लिंगागिइ जाइ नियमणं जं च ।
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