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जियदेहाणं वण्णा, उदएणं वण्णनामस्स ।। ११४ ॥ गंधेण सुरभिगंधं, अहवा गंधेण दुरभिगंधं तु । होइ जियाणं देह, उदयं गंधनामस्स ॥ ११५ ॥ तित्तगकडुयकसाया, अंबिलमहुरा रसा वि पंच भवे विहु जियदेहाणं, रसनामुदएण खज्जंता ॥ ११६ ॥ गुरुहुमिउकढणावि य, निद्धा लुक्खा य होंति सीउन्हा जियदेहाणं फासा, उदएणं फासनामस्स ॥ ११७ ॥ गुरुं न होइ देहं न य लहुयं होइ सव्वजीवाणं । होइ हु अगुरुयलहुये, अगुरुलहुयनाम उदपणं ॥ ११८ ॥ अंगावयवो पडिजिब्भियाइ जो अप्पणी उवग्घायं । कुणइ हु देहमि ठिखो, सो उवघायस्स उ विवागो ११९ तयविसदंतत्रिसाई, अंगावयवो य जो उ अन्नेसिं । जीवाण कुणइ घायं, सो परघायस्स उ विवागो ॥ १२० ॥ नारयतिरियन रामरभवेसु जंतस्स अंतरगईए | अणुपुवीए उदयो, सा चउहा सुणसु जह होइ ॥ १२१ ॥ नरयाउयस्स उदए, नरए वक्केण गच्छमाणस्स । नरयापुव्वियाए, तर्हि उदओ अन्नहिं नत्थि ॥ १२२॥
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