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जं असिणा तहि छिजइ, सो उ विवागो असायस्स ॥ एयं सुहदुक्खकर, चउगइमावन्नयाण जीवाणं । सामन्नेणं भणिमो, सुहदुक्खं दुसु दुसु गईसु ॥३०॥ देवेसु य मणुएसु य, तत्थ विसिढेसु कामभोगेसु । जं उवभुंजइ जीवो, सो उ विवागो उ सायस्स ॥३१ नरएसु य तिरिएसु य, तेसु य दुक्खाइँ गरूवाई। जं उवभुंजइ जीवो, सो उ विवागो असायस्स ॥३२॥ एयमिह वेयणीयं, चनत्थकम्मं तु होइ मोहणियं । तं मजपाणसरिसं, जह होइ तहा निसामेह ॥३३॥ जह मजपाणमूढो, लोए पुरिसो परवसो होइ । तह मोहेणवि मुढो, जीवोवि परवसो होइ ॥ ३४ ॥ मोहेइ मोहणीयं, तं पि समासेण भण्णए दुविहं । दसणमोहं पढमं, चरित्तमोह भवे बोयं ॥ ३५ ॥ दसणमोहं तिविहं, सम्मं मीसं च तह य मिच्छत्तं । सुद्धं अद्धविसुद्धं, अविसुद्ध तं जहाकमसो ।। ३६ ॥ केवलनाणुवलद्धे, जीवाइपयत्थ सदहे जेणं । तं संमत्तं कम्म, सिवसहसंपत्तिपरिणामं ॥ ३७ ॥
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