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(२५५) मणपज्जनपुंसाणं वच्चासो सेसबन्धसमा ॥ ४१ ॥ देसोवघाइयाण उदए देसोव होइ सव्वो वा। देसोवघायओ चिय थचक्खुसम्मत्तविग्घाणं ॥ ४२ ॥ घाइं ठाण पडुच्चं सव्वघाईण होइ जह बन्धे । अग्घाईणं ठाणं पडुच्च भणिमो विसेसोत्थ ॥ ४३ ॥ थावरचउ थायवनरलसत्ततिरिविगलमणुयतियगाणं । नग्गोहाइ चउण्हं इगिंदिउसभाइछण्हंपि ॥ ४४ ॥ तिरिमणुपाओगाणं मीसगुरुय खरनरयदेवपुठवीणं । दुहाणि उ च्चिय रसो उदए उद्दीरणाए य ॥ ४५ ॥ सम्मत्तमीसगाणं असुभरसो सेसयाण बन्धुत्तं । उक्कोसुदीरणा संतयंमि छहाणवडिए वि ॥ ४६ ॥ मोहणियनाणवरणं केवलियं दंसणं विरयविग्छ । संपुन्नजीवदव्वे न पज्जवेसु कुणइ पाकं ॥ ४७ ॥ गुरुलहुगाणंतपएसिएसु चक्खुस्त सेसविग्घाणं । जोग्गेसु गहणधरणे ओहीणं रूविदव्वेसु ॥ १८ ॥ सेसाणं जह बन्धे होइ विवागोउ पच्चओ दुविहो । भवपरिणामकयो वा निगुणसगुणाण परिणईओ ४९॥
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