________________
२४८
आवलिअसंखभागा जावावलि तत्थ अइत्थवणा ॥६ आवलिदोसंखसा जति वड्डइ अहिणवो उ ठितिबन्धो उव्वदृति तो चरिमा एवं जावलिय अइत्थवणा ॥७॥ अइत्थावणालियाए पुण्णाए वड्डइत्ति निक्खेवो। ठितिउठवट्टणमेवं एत्तो ओव्वट्टणं वोच्छं ॥८॥
ओवटुंतो उ ठिति उदयावलिबाहिरा ठिईठाणा । निक्खिवति से तिभागे समयहिगे लंघिउं सेसं ॥९॥ उदयावलि उवरित्था एमेवोवट्टए ठितिठाणा । जावावलितिभागो समयहिगो सेसठितिणं तु ॥१०॥ इच्छोरदृणठिइठाणगायो उल्लंघिऊण आवलियं । तदलियं निक्खवइ अह ठितिठाणेसु सम्वेसु ॥११॥ उदयावलिउवरित्थं ठाणं अहिकिञ्च होइ अइहीणो। निक्खेवो सम्वोवरि ठिइठाणवसा भवे परमो ॥१२॥ समयाहिय अइत्थवणा बन्धावलिया य मोत्तु निक्खेवो कम्मठिई बन्धोदय आवलिय मोत्तु योवट्टे ॥ १३ ॥ निवाघाए एवं ठितिघाओ एत्थ होइ वाघाओ। वाघोए समजणं कंडगमइत्थावणा होइ ॥ १४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org