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भूर्भुवःस्वः-समुत्तार, मानंजर, कालंजर, ध्रुव, अजेय, अज, अचल, अव्यय, विभु, अचिन्त्य, असंख्य, आदिसंख्येय, आदिसांख्य, आदिकेशव, प्रादिशिव, महाब्रह्म, परमशिव, एकानेकान्तस्वरूप, भावा भावविवजित, अस्तिनास्तिद्वयातीत, पुण्यपापविरहित, सुखदुःखविविक्त, अव्यक्त, व्यक्त-स्वरूप, अनादिमध्यनिधन, मुक्तिस्वरूप, निःसंग, निरातंक, निःशंक, निर्भय, निर्द्वन्द्व, निस्तरंग, निरूमि, निरामय, निष्कलंक, परमदैवत, सदाशिव, महादेव, शंकर, महेश्वर, महाव्रतो, महापंचमुख, मृत्युजय, अष्टमूर्ति, भूतनाथ, जगदानन्द, जगत्पितामह, जगदेवाधिदेव, जगदीश्वर, जगदादिकन्द, जगद्भास्वत्, जगत्कर्मसाक्षी, जगच्चक्षुष, जयीतनु, अमृतकर , शीतकर, ज्योतिश्चक्रचक्री, महाज्योति,महातमःपार, सुप्रतिष्ठित, स्वयंकर्ता,स्वयंहर्ता, स्वयंपालक, आत्मेश्वर, विश्वात्मा, सर्व-देवमय, सर्वध्यानमय, सर्वमंत्रमय, सर्वरहस्यमय, सर्व ज्ञानमय, सर्व तेजोमय, सर्वभावाभावजीवजीवेश्वर, अरहस्यरहस्य, अस्पृहस्पृहणीय, अचिन्त्य-चिन्तनीय, अकामकामधेनु, असंकल्पित-कल्पद्रुम, अचिन्त्यचिन्तामरिण, चतुर्दशरज्ज्वात्मकलोकचूडामणि, चतुरशीतिजीवयोनिलक्षप्राणनायक, पुरुषार्थनाथ, परमार्थनाथ, अनाथनाथ, जीवनाथ, देवदानवमानवसिद्धसेनाधिनाथ, निरंजन, अनन्तकल्यारण, निकेतनकीति, सुगृहीतनामधेय, धीरोदात्त, धीरोद्धत, धीरशान्त, धीरललित, पुरुषोत्तम, पुण्यश्लोक, शतसहस्र-लक्षकोटिवन्दित-पादारविन्द, सर्वगत, सर्वप्राप्त, सर्वज्ञान, सर्वसमर्थ, सर्वप्रद, सर्वहित, सर्वाधिनाथ, क्षेत्र, पात्र, तीर्थ, पावन, पवित्र, अनुत्तर, उत्तर, योगाचार्य, सुप्रक्षालन, प्रवर, अग्र, वाचस्पति, मांगल्य, सर्वात्मनाथ, सर्वार्थ, अमृत, सदोदित, ब्रह्मचारी, तायी, दाक्षिणीय, निर्विकार, वज्रर्षभ-नाराचमति, तत्त्वदश्वा, पारदर्शी, निरुपमज्ञानबलवीर्यतेजोऽनन्तैश्वर्यमय, आदि-पुरुष, आदिपरमेष्ठी, ग्रादिमहेश, महाज्योतिःसत्व, महाचिधनेश्वर, महामोहसंहारी, महासत्त्व, महाज्ञानमहेन्द्र, महालय, महाशान्त, महायोगोन्द्र, अयोगी, महामहोयान्, महासिद्ध, महोयान, शिव-अचलअरुज - अनन्त - अक्षय - अव्याबाध - अपुनरावृत्ति - महानन्द - महोदय - सर्वदुःखक्षय - केवल्य - अमृत - निर्वाण - अक्षर - परब्रह्म - निःश्रेयस् - अपुनर्भव, सिद्धिगतिनामधेय स्थान - संप्राप्त, चरमाचरमवान - आदिनाथ, त्रिजगन्नाथ, त्रिजगत्स्वामी, विशाल-शासन, निर्विकल्प, सर्व लब्धिसंपन्न, कल्पनातीत, कलाकलापकलित, केवलज्ञानी, परमयोगी, विस्फुरदुरुशुक्लध्यानाग्नि-निर्दग्धकर्मबीज, प्राप्तानन्तचतुष्टय, सौम्य, शांत, मंगलवरद्, अष्टादशदोषरहित, समस्त - विश्वसभी हित ।
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[ जिन भक्ति
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