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________________ ४२० = बृहत्कल्पभाष्यम् ४०८७.अंतोनियंसणी पुण, लीणतरा जाव अद्धजंघातो। ४०९२.संघातिमेतरो वा, सव्वोऽवेसो समासओ उवधी। बाहिर खुलगपमाणा, कडीय दोरेण पडिबद्धा। पासगबद्धमझुसिरो, जं चाऽऽइण्णं तगं णेयं॥ अन्तर्निवसनी कटिभाग से ऊपर-नीचे अर्द्धजंघा प्रमाण उपरोक्त समस्त उपधि के संक्षेप में दो प्रकार की होती है। वह पहनते समय शरीर से लीनतर होती है। हैं-संघातिम और इतर अर्थात् असंघातिम। असंघातिम बहिर्निवसनी कटिभाग से प्रारंभ होकर चरणगुल्फ प्रमाण की उपधि पाशक-बद्ध कसाबद्ध तथा अशुषिर अर्थात् असीवित होती है। उसे डोरी से कटिभाग में बांधा जाता है। होता है। जिसका आचरण पूर्व आचार्यों ने किया है, वह सारा ४०८८.छादेति अणुक्कुयिते, उरोरुहे कंचुओ असिव्वितओ। यहां ज्ञातव्य है। एमेव य उक्कच्छी, सा णवरं दाहिणे पासे॥ ४०९३.उक्कोसओ जिणाणं, चउब्विहो मज्झिमो वि य तहेव। कंचुक अपने हाथ से ढ़ाई हाथ प्रमाण लंबा और एक हाथ जहण्णो चउब्विहो खलु, एत्तो थेराण वोच्छामि। प्रमाण चौड़े कपड़े का किया जाता है। उसकी सिलाई नहीं जिनकल्पी मुनियों के उत्कृष्ट उपधि चार प्रकार की होती। वह श्लथ स्तनों को आच्छादित करने के लिए उपयोग है-तीन कल्प और एक पात्र। मध्यम उपधि भी चार प्रकार में आता है। कंचुक की भांति ही औपकक्षिकी होती है। वह की है-रजोहरण, पटलक, पात्रबंध तथा रजस्त्राण। जघन्य दक्षिण पार्श्व में समचतुरस्र डेढ़ हाथ प्रमाण होती है तथा भी चार प्रकार की है-मुखपोतिका, पादकेसरिया, गोच्छग स्तनों तथा पीठ को आच्छादित करती है। वह वीटक से बद्ध और पात्र-स्थापन। आगे स्थविरकल्पी मुनियों की उपधि के वामपार्श्व में धारण की जाती है। विषय में कहूंगा। ४०८९.वेगच्छिया उ पट्टो, कंचुकमुक्कच्छियं च छादेति। ४०९४.उक्कोसो थेराणं, चउब्विहो छब्विहो य मज्झिमओ। संघाडीओ चउरो, तत्थ दुहत्था उ वसधीए॥ जहण्णो चउब्विहो खलु, एत्तो अज्जाण वोच्छामि। ४०९०.दुन्नि तिहत्थायामा, भिक्खट्ठा एग एग उच्चारे। स्थविरकल्पी मुनियों के उत्कृष्ट और जघन्य उपधि ओसरणे चउहत्थाऽनिसन्नपच्छाइणी मसिणा॥ जिनकल्पी मुनियों की भांति चार-चार प्रकार की है। उनके वैकक्षिकी नामक पट्ट कंचुक तथा औपकक्षिकी को मध्यम उपधि छह प्रकार की है-रजोहरण, पटलक, पात्रकआच्छादित करता है और उसे वामपार्श्व में पहना जाता है। बंध, रजस्त्राण, मात्रक और चोलपट्टक। आगे आर्यिकाओं की तथा प्रत्येक साध्वी को चार संघाटियां कल्पती हैं-एक दो उपधि कहूंगा। हाथ लंबी, दो तीन हाथ वाली और एक चार हाथ लंबी। ये ४०९५.उक्कोसो अट्ठविहो, मज्झिमओ होइ तेरसविहो उ। चार संघाटियां हैं। इनमें से दो हाथ वाली संघाटी वसति में, जहण्णो चउव्विहो खलु, एत्तो उ उवग्गहं वोच्छं। तीन हाथ लंबी एक संघाटी भिक्षा के लिए जाते समय, और आर्यिकाओं की उत्कृष्ट उपधि के आठ प्रकार, मध्यम के एक संघाटी उच्चार के लिए जाते समय तथा चार हाथ लंबी तेरह प्रकार और जघन्य के चार प्रकार हैं। आगे औपग्रहिक संघाटी व्याख्यान सुनने समवसरण में जाते समय धारण की उपधि का कथन करूंगा। जाती है। वह संघाटी अन्य संघाटियों से बृहत्तर प्रमाण वाली ४०९६.पीढग णिसिज्ज दंडगपमज्जणी घट्टए डगलमादी। होती है। वह अनिषण्ण अवस्था के लिए है। अतः आर्यिकाएं पिप्पलग सूयि णहरणि, सोहणगदुगं जहण्णो उ॥ बैठे नहीं, खड़े-खड़े ही अनुयोग आदि सुने। वह संघाटी स्कंध जघन्य औपग्रहिक उपकरण-पीढ़क, निषद्या, दंडकसे लेकर पैरों तक आच्छादन करती है। वह मसृण होती है। प्रमार्जनी, घट्टक-लिप्त पात्र को चिकना करने का पत्थर, उसको ऊपर ओढ़ने से प्रवचन की प्रभावना होती है। डगलक, पिप्पलक, सूची, नखहरणी, शोधनद्विक४०९१.खंधकरणी उ चउहत्थवित्थरा वायविहुतरक्खट्ठा। कर्णशोधक, दंतशोधक। खुज्जकरणी उ कीरति, रूववतीणं कुडहहेउं॥ ४०९७.वासत्ताणे पणगं, चिलिमिणिपणगं दुगं च संथारे। स्कंधकरणी चार हाथ विस्तृत और समचतुरस्र होती है। दंडादीपणगं पुण, मत्तगतिग पादलेहणिया। वस्त्र को वायु से उड़ने से बचाती है। रूपवती श्रमणियों की ४०९८.चम्मतिगं पट्टदुगं, णायव्वो मज्झिमोवही एसो। निरूपता करने के लिए कुटुभ (कूबड़ेपन) के लिए अज्जाण वारए पुण, मज्झिमए होति अतिरित्तो॥ कुब्जकरणी की जाती है। पीठ पर लपेट कर औपकक्षिकी मध्यम औपग्रहिक उपकरण-वर्षात्राण पंचक (बालमय, और वैकक्षिकी से निषद्ध कर उससे कुटुभ (कुबड़ापन) किया सूत्रमय, सूचीमय, कुटशीर्षक और छत्रक), चिलिमिलिपंचक जाता है। (बालमयी, सूत्रमयी, वल्कमयी, कटमयी और दंडमयी), दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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