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________________ विषयानुक्रम पाया गाथा संख्या विषय ६४४९-६४५२ पूर्व-पश्चिम तीर्थंकरों के परिहारकल्पिकों का गच्छ कितने काल-संयोग तक परम्परा से अनुवर्तित होता है ? शिष्य की जिज्ञासा। आचार्य का समाधान। ६४५३ कल्प का स्वीकार किससे? ६४५४-६४५६ परिहारकल्प के स्वीकार करने वाले मुनियों की अर्हताएं। ६४५७ अरिहंतों से पूछकर कल्प को स्वीकार करने की विधि। तथा उनके द्वारा सामाचारी आदि का निदर्शन। ६४५८ अरिहंतों द्वारा गणप्रमाण, उपधिप्रमाण आदि का उपदेश। ६४५९ भक्तपान विषयक तथा उपधि विषयक क्रमशः सात-पांच एषणाएं। उनमें अभिग्रह धारण की विधि। ६४६० कल्प को स्वीकार करने का समय तथा तीन गणों की स्थापना। ६४६१ तीन गणों में जघन्यतः और उत्कृष्टतः पुरुष संख्या। ६४६२ गणों की उत्कृष्टतः और जघन्यतः संख्या प्रमाण। ६४६३ नौ पुरुषों में कल्पस्थित, पारिहारिक, अनुपारिहारिक की स्थापना विधि। ६४६४,६४६५ कल्प प्रतिपन्न के अठारह महीने तक उपद्रव नहीं। उसके पश्चात् उपद्रव संभव। ६४६६ कल्प के स्थापित होने पर एक-दो या अनेक व्यक्तियों के उपसंपन्न होने पर वे पारिहारिकों के अकल्पनीय नहीं। ६४६७ कल्प के न्यून हो जाने पर उतने ही मुनियों का गण में प्रवेश। ६४६८ कल्प अन्यून हो, प्रविष्ट होने वाले उपसंपन्न मुनि यदि नौ हो तो अन्य गण की स्थापना का निर्देश। कल्प में पारिहारिकों द्वारा अथवा अनुपारिहारिकों के द्वारा अपराध हो जाने पर कल्पस्थित तथा गीतार्थ मुनि प्रायश्चित्त देने में प्रमाणभूत। ६४७० पारिहारिक और अनुपारिहारिक मुनियों की कल्पस्थित के सम्मुख आलोचना लेने की तथा गाथा संख्या विषय अनुपारिहारिकों की पारिहारिकों के पीछे-पीछे घूमने की विधि। ६४७१ पारिहारिकों के लिए नौ आदमियों के साथ सूत्रार्थ की प्रतिपृच्छा आदि करने की अकल्पनीयता। कारण में आलाप आदि की विधि। ६४७२,६४७३ पारिहारिककल्प मुनियों के विविध तपस्या की तालिका तथा कल्पस्थित के लिए पारिहारिक मुनियों द्वारा भक्तपान लाने की विधि। ६४७४ पारिहारिक, अनुपारिहारिक तथा कल्पस्थित मुनियों की तपस्या का क्रम। ६४७५ अनुपारिहारिक और पारिहारिक मुनियों के परस्पर अन्यस्थानों में कालभेद से वैयावृत्य करने की विधि। ६४७६-६४७८ छह-छह महीनों तक क्रमशः पारिहारिक, अनुपारिहारिक तथा कल्पस्थित मुनियों के तपस्या करने की विधि। ६४७९ अठारह महिने का कल्प संपन्न करने के पश्चात् उनमें से जिनकल्पी मुनि के लिए आगे साधना की विधि। ६४८० स्थविरकल्पिक मुनियों के अठारह मास पूर्ण होने पर पुनः गच्छ में आने की विधि। ६४८१ निर्विशमानक तथा निर्विष्टकायिक कल्पस्थिति का निरूपण। ६४८२ जिनकल्पी के श्रुत-संहनन का निरूपण। ६४८३,६४८४ जिनकल्पचारित्र तथा जिनकल्पस्थिति को स्वीकार करने की अर्हताएं। ६४८५ स्थविरकल्पी की विशेषताएं। ६४८६ उत्सर्गतः अपवादतः स्थविरकल्प की स्थिति। ६४८७ प्रलंब सूत्र से षड्विधकल्प पर्यन्त उत्सर्ग में अपवाद और अपवाद में उत्सर्ग करने वाला आशातना का भागी। ६४८८ षड्विधकल्पस्थिति को जानकर श्रद्धा आदि करने वाले को लाभ। ६४८९ छेद सूत्र के रहस्यों को अयोग्य शिष्य को बताने वाला अनन्तसंसारी। ६४९० योग्य शिष्य को छेद सूत्रों के रहस्य बताने वाला मोक्ष का अधिकारी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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