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________________ कथा परिशिष्ट =७३३ १४५. साधु (राजपुत्र) दृष्टान्त मथुरा नगरी में एक देव निर्मित स्तूप था। उसकी पूजा के निमित्त श्राविका साध्वियों के साथ बाहर गई। एक साधु (पूर्व राजकुमार) वहां आतापना ले रहा था। चोर श्राविकाओं का अपहरण कर ले जाने लगे। उन्होंने जोर से आक्रन्दन किया। राजपुत्र ने आक्रन्दन सुना। वह निकट आया, चोरों से युद्ध कर उन्हें मुक्त करा लिया। गा. ६२७५ वृ. पृ. १६५६ १४६. पुत्री-विमुक्ति मथुरा नगरी में एक वणिक् अपनी भार्या के साथ प्रव्रजित हुआ। उसने अपनी एक छोटी लड़की को अपने मित्र को सौंपा। काल बीतते बीतते मित्र कालगत हो गया। दुर्भिक्ष के कारण मित्र का परिवार छिन्न-भिन्न हो गया। वह लड़की भी भटकती-भटकती दासत्व को प्राप्त हो गई। विहरण करते हुए उसके पिता मुनि उस ग्राम में आए। उसने पिता को पहचान लिया। पिता से दासत्व से मुक्त कराने के लिए निवेदन किया। पिता का सुप्स मोह जाग गया। पिता उसके स्वामी से मिला और उससे कहा-यह ऋषिकन्या है। तुम्हारे घर से दुर्भिक्ष आदि मिट गया है। इस अब मुक्त कर दे। इतना कहने पर भी वह यदि नहीं मानता है तो मुनि सरोष स्वर में कहता है। 'मैं तुम्हें शाप दूंगा, जिससे तुम नष्ट हो जाओगे।' ऐसे अथवा अन्य किसी प्रकार से डरा-धमका कर पिता ने अपनी संसारपक्षीया पुत्री को मुक्त करा दिया। गाथा. ६२९३-६२९५ वृ. पृ. १६६१ १४७. श्रेष्ठी दृष्टान्त एक बार राजदरबार में किसी व्यक्ति ने हास्यकारी वचन बोले। उसके वचनों को सुनते ही सारे लोग हंसने लगे। दरबार में एक श्रेष्ठी भी आया हुआ था। वह भी हंसा। सबकी हंसी थोड़ी देर बाद रुक गई पर उसकी हंसी नहीं रुकी। वह इतना तेज हंसा कि उसका मुंह खुला ही रह गया। अनेक प्रयत्नों के बाद भी उसका मुख बंद नहीं हुआ। अनेक वैद्यों ने प्रयत्न किये पर सफलता नहीं मिली। एक आगन्तुक वैद्य भी वहीं था। वह वैद्य बोला-मैं इसकी चिकित्सा कर सकता हूं। उसने लोहे के फलक को तपाया-जब वह अग्निवत् बन गई। तब उस फलक को श्रेष्ठी के मुख में डालने लगा। उस भय से उसका मुख बंद हो गया। गा. ६३२५ वृ. पृ. १६७० १४८. मृत दृष्टान्त एक बार एक साधु भिक्षा के लिए जा रहा था। उस समय रानी गवाक्ष में बैठी नगर को निहार रही थी। रानी ने देखा-एक साधु भिक्षा के लिए जा रहा है और हंस भी रहा है। हंसते हुए उस साधु को देखकर रानी ने राजा से कहा-देखो-देखो मृत हंस रहा है। राजा ने पूछा-कहां है? उसने साधु की ओर ईशारा किया। राजा ने कहा-यह साधु है, मृत कैसे? रानी बोली इस भव में इसने समस्त सांसारिक सुखों को त्याग दिया। किन्तु साधुचर्या में जागरुक नहीं है अतः यह जीता हुआ भी मरा हुआ है। गा. ६३२६ वृ. पृ. १६७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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