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________________ ७३२ = बृहत्कल्पभाष्यम् एक बार विशेष प्रसंग पर राजा ने अपने व्यक्तियों से पूछा-अमात्य कहां है ? पुरुषों ने कहा-देव! आपने उसे अविनीत मानकर मरवा डाला है। यह सुनते ही राजा शोक-विह्वल होकर विलाप करने लगा। कि अरे! मैंने अकार्य कर डाला। लोगों ने कुछ नहीं बताया। जब राजा स्वस्थ हुआ तब उन लोगों ने कहा-देव! हम खोज करते हैं कि जिन चंडालों को आपने अमात्य को मार डालने का आदेश दिया था, कहीं उन्होंने उसे छिपाकर तो नहीं रखा है? उन लोगों ने कुछ दिन गवेषणा का बहाना करते हुए, एक दिन अमात्य को राजा के समक्ष उपस्थित कर दिया। अमात्य को देखकर राजा संतुष्ट हुआ। अमात्य ने तब सारा वृत्तांत सुनाया। प्रसन्न होकर राजा ने उसे विपुल धन दिया। गा. ६२४४,६२४५ वृ. पृ. १६४७ १४२. सपत्नी दृष्टान्त एक सेठ के दो पत्नियां थी। एक प्रिय थी, दूसरी अप्रिय। अप्रिय पत्नी अकाममरण से मरकर व्यंतरी बनी। श्रेष्ठी भी स्थविरों के पास धर्म-श्रवण कर प्रव्रजित हो गया। प्रिय पत्नि भी प्रवर्जित हो गई। वह व्यंतरी पूर्वभव के वैर के कारण साध्वी (पूर्व सपत्नि) के छिद्र देखने लगी। एक बार साध्वी प्रमत्त थी। व्यंतरी ने उन्हें ठग लिया। उसे क्षिप्त कर दिया। गा. ६२५९ वृ. पृ. १६५१ १४३. कर्मकर दृष्टान्त एक कौटुंबिक की पत्नी रूपवती थी। कर्मकर उस पर मोहित हो गया। कर्मकर ने उससे भोग की प्रार्थना की। उसने प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया। उस कर्मकर का उसके प्रति अत्यधिक आसक्ति हो गयी। वह अकामनिर्जरा से मर कर व्यन्तर देव बना। इधर वह संसार से विरक्त होकर प्रव्रजित हो गई। देव ने साध्वी के प्रमाद को जानकर ठग लिया। उसे क्षिप्त कर दिया। गा. ६२६० वृ. पृ. १६५२ १४४. भ्राता दृष्टान्त एक गांव में दो भाई साथ-साथ रहते थे। ज्येष्ठ भाई छोटे भाई की पत्नी में अनुरक्त हो गया। उसने उससे भोग की प्रार्थना की। उसने प्रार्थना को अस्वीकार कर लिया। ज्येष्ठ भाई ने सोचा जब तक छोटा भाई जीवित रहेगा तब तक मेरी इच्छा पूर्ण नहीं होगी। जैसे-तैसे छोटे भाई को मार देना चाहिए। ऐसा सोच ज्येष्ठ भाई मारने का अवसर देखने लगा। एक दिन मौका देखकर खाद्य वस्तु में विष मिलाकर छोटे भाई को खाने के लिये दिया। खाते ही उसके प्राण पखेरू उड़ गये। भाई का कार्य सम्पन्न कर उसकी पत्नी के पास गया और भोग की इच्छा व्यक्त की। उसने सोचा भोग के निमित्त से जेठ ने भाई को मार डाला। धिक्कार है ऐसे भोगों को। वह विरक्त होकर प्रव्रजित हो गई। ज्येष्ठ भाई दुःख से संतप्त होकर अकाम-निर्जरा से मृत्यु को प्राप्त होकर व्यन्तर देव बना। उसने विभंग-अज्ञान से पूर्वभव के वैर को जानकर साध्वी के प्रमाद को देख उसे छल लिया। उसे यक्षाविष्ट कर क्षिप्त कर दिया। गा. ६२६१ वृ. पृ. १६५२ Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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