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________________ कथा परिशिष्ट =७२१ ११०. मांसभक्षी एक व्यक्ति गृहवास में मांसभक्षी था। कालान्तर में प्रतिबुद्ध हो उसने दीक्षा ग्रहण कर ली। एक बार भिक्षा के लिए वजन करते हुए कसाइयों द्वारा एक महिष को कटते हुए देखा। पूर्व अभ्यास के कारण महिष के मांस खाने की तीव्र लालसा उत्पन्न हो गई। वह उपाश्रय में लौट आया। रात्री में तीव्राभिलाषा के वशीभूत हो स्त्यानर्द्धि निद्रा में उठा। महिष मंडल में पहुंच एक महिष को मारा। मांस खाकर अपनी मनोभिलाषा पूर्ण कर बचा हुआ मांस उपाश्रय के बाहर डाल पुनः अपनी शय्या पर सो गया। प्रातः गुरु से आलोचना के लिए निवेदन किया कि स्वप्न में मैंने ऐसे किया। सूर्योदय होने पर उपाश्रय के बाहर मांस के टुकड़े देख गुरु ने जाना कि स्त्यानद्धि का प्रभाव है। गा. ५०१८ वृ. पृ. १३४० १११. मोदकभक्त एक साधु गोचरी के लिए घर-घर में भ्रमण कर रहा था। उसने एक घर में मोदक तैयार होते हुए देखा। मोदक खाने की अभिलाषा हो गई। उस दिन काफी घरों में घूमने पर भी मोदक प्राप्त नहीं हुए। गोचरी कर उपाश्रय में लौट आया। रात में सोने के उपरांत मोदक खाने की भावना के वशीभूत हो उठा। पात्र लेकर मोदक वाले गृह के कपाटों को तोड़कर घर में प्रवेश किया। मोदकों को देख वहीं मोदक खाने लगा। मन तृस कर पात्रों को मोदकों से भर उपाश्रय में आ गया। पात्र यथास्थान रख अपने संस्तारक पर सो गया। पश्चिम रात्री में आवश्यक संपन्न कर गुरु के समक्ष स्वप्न बतला आलोचना की। सूर्योदय होने पर पात्र प्रतिलेखन करते समय मोदकों को देख गुरु ने जाना यह स्त्यानर्द्धि निद्रा के कारण हुआ है। गा. ५०१९ वृ. पृ. १३४० ११२. कुंभकार एक कुंभकार प्रतिबुद्ध हो प्रव्रजित हो गया। साधना करते-करते एक रात्री में स्त्यानर्द्धि निद्रा का उदय हो गया। पूर्वाभ्यास के कारण पास में सुप्त साधु के सिर को मृत्तिकापिंड समझ पहले उसे पैरों से मसला। उस सिर को घूमाने लगा। कुंभ तैयार हो गया है यह सोच उस सिर का छेदन कर पास में रख सो गया। प्रातः उठ कर गुरु से आलोचना की कि रात स्वप्न में मैंने एक घड़ा तैयार किया। किंचित् प्रकाश होने पर गुरु ने मृत कलेवर को देखा और जान लिया कि स्त्यानर्द्धि निद्रा का उदय हुआ है। गा. ५०१८ वृ. पृ. १३४० ११३. मदोन्मत्त हाथी भिक्षा के लिए घूमते हुए एक साधु को सामने से आते हुए एक मदोन्मत्त हाथी ने अपनी सूंड से पकड़ हवा में उछाल दिया। पास ही घास पर गिरने से साधु के विशेष क्षति नहीं हुई किन्तु उसके मन में हाथी के प्रति अत्यन्त प्रद्वेषभाव उत्पन्न हो गए। उस रात उसके स्त्यानर्द्धि निद्रा का उदय हो गया। सुबह के प्रद्वेष के कारण वह सीधा हस्तिशाला पहुंचा। हस्तिशाला के दरवाजों को तोड़ भीतर एक हाथी को मुष्टि प्रहार से हत कर उसके दांत उखाड़ दिए। नींद में ही चलते उपाश्रय के बाहर दांत रख पुनः अपनी शय्या पर जाकर सो गया। प्रभात में स्वप्न बतला कर आलोचना की। सुबह क्षेत्र प्रतिलेखन करने पर गुरु ने जान लिया यह स्त्यानद्धि निद्रा के कारण हुआ है। गा. ५०२१ वृ. पृ. १३४१ १. स्त्यानीि निद्रा की उदयावस्था में व्यक्ति की शक्ति शतगुणित हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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