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________________ कथा परिशिष्ट =७०३ ५२. वणिक् दासी एक वृद्ध दासी प्रातः काष्ठ लाने के लिए जंगल में गई। मध्याह्न में लौटी। वह भूख-प्यास से क्लान्त थी। काष्ठ बहुत थोड़ा था, अतः वणिक् ने उसे पीटा। वह बिना कुछ खाए पुनः काष्ठ लाने गई। लौटते समय काष्ठभार अधिक था। ज्येष्ठ मास में मध्याह्न का समय था। उसके हाथ से एक काष्ठयष्टि गिर गई, जिसे उठाने के लिए नीचे झुकी। उस समय उसे तीर्थंकर की देशना सुनाई दी, वह झुकी हुई ही सुनती रही, उसे भूख-प्यास और गर्मी की अनुभूति ही नहीं हुई। सूर्यास्त समय में तीर्थंकर धर्मकथा कहकर उठे। दासी जागृत ह कारण उसकी भूख, प्यास आदि होने पर भी कष्ट की अनुभूति नहीं रही। गा. १२०५ वृ. पृ. ३७४ ५३. बैल दृष्टांत बैल पूरे दिन गाड़ी में अथवा अरहट में जुते रहकर काम करता। सायं वहां से मुक्त होने के पश्चात् उसे चारा दिया गया। सरस-नीरस चारे को बिना स्वाद लिए वह खा लेता है। तृप्त होने के बाद बैठकर उसकी जुगाली करता हुआ स्वाद का अनुभव करता है। उसमें जो कचवर (कचरा) होता है, उसका परित्याग कर सार को ग्रहण कर लेता है। इसी प्रकार मुनि गुरु के पास सम्पूर्ण सूत्र को ग्रहण करता है, उसके बाद अर्थ का ग्रहण करता है। बिना अर्थ के सूत्र स्वादरहित भोजन के तुल्य होता है। गा. १२१९ वृ. पृ. ३७७ ५४. शालि दृष्टांत किसान बहुत परिश्रम से चावल की खेती करता है। चावल पकने के बाद काटकर, छिलके उतारकर, भूसी को अलगकर कोष्ठागार में रख देता है। यदि वह उन चावलों को खाने में उपभोग नहीं करता है तो चावल संग्रह का फल निष्फल हो जाता है। वैसे ही शिष्य १२ वर्ष तक सूत्र का अध्ययन करने में परिश्रम करता है। पुनः अर्थ को नहीं सुनता है तो परिश्रम निष्फल हो जाता है। गा. १२१९ वृ. पृ. ३७८ ५५. बैल उदाहरण बैल प्रतिदिन भार वहन करता है और हल को भी वहन करता है। फिर भी यदि मालिक उस बैल पर बारबार चाबुक का प्रहार करता है तो वह क्रुद्ध हो जाता है। कूदकर भार को गिरा देता है। हल को तोड़ देता है। वैसे ही आचार्य शिष्य को रुक्ष व्यवहार से वाचना देता है तो शिष्य कषाय से पीड़ित होकर गच्छ से निकल सकता है। गा. १२६८ वृ. पृ. ३९१ ५६. राज दृष्टान्त एक राजा अक्षिवेदना से पीड़ित हो गया। वहां के वैद्य सफल चिकित्सा नहीं कर सके। आगंतुक वैद्य ने कहा-मेरे पास अक्षिशूलप्रशामक गुटिका है। इसे आंख में आंजने से कुछ क्षणों के लिए तीव्रतर दुःसह वेदना होगी। यदि आप मुझे मृत्यु-दंड न दें तो मैं गुटिका से आपकी आंखें आंज दूं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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