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________________ कथा परिशिष्ट ३६. रक्तपट भिक्षु पांच सौ व्यक्तियों का सार्थ अटवी में भटक गया। उसके साथ एक अभागी रक्तपट भिक्षु भी था। उसने उन पांच सौ व्यक्तियों के पुण्य का उपहनन कर दिया। सब प्यास से व्याकुल थे। उनसे कुछ दूरी पर बादल बरस रहे थे। किन्तु उनको एक बूंद भी नहीं मिल रही थी । सार्थ दो भागों में बंट गया । रक्तपट भिक्षु प्रथम विभाग के साथ मिल गया। वर्षा सर्वत्र होने लगी, परन्तु जहां वह भिक्षु था, वहां वर्षा नहीं हुई । सार्थ के लोगों ने उसे निकाल दिया। वह अकेला हो गया। जहां वह रहा, वहां वर्षा नहीं हुई । अन्यत्र वर्षा का अभाव नहीं रहा । गा. ७४२ वृ. पृ. २३० ३७. अमात्य एक राजा के गर्दभ जैसे कान थे। वह हमेशा अपने कानों को ढंककर रखता था। एक बार मंत्री ने एकान्त में राजा से पूछा- आप सिर और कान को सदा आवृत्त क्यों रखते हैं ? राजा ने यथास्थिति बता दी और कहा- यह रहस्य किसी के सामने प्रगट मत करना। मंत्री बात पचाने में असमर्थ था। दूसरी और राजा का निर्देश था बात किसी को कहनी नहीं है। अब क्या करे? वह अटवी में गया। एक वृक्ष के कोटर में मुख डालकर जोर-जोर से बोलने लगा - 'गर्दभ कन्ना राया, गर्दभ कन्ना राया' फिर चला गया। उधर कोई बढ़ई आया। उसी वृक्ष को काटकर वह ले गया। उसका बाजा बनाया। भवितव्यता से उस बाजे को सबसे पहले राजा के सामने बजाया । वह बाजा शब्द करने लगा-गर्दभ कन्ना राया, गर्दभ कन्ना राया ( राजा के गर्वभ जैसे कान) । राजा ने सुना तो मंत्री से पूछा- तुम्हारे अतिरिक्त किसी को पता नहीं था। क्या तुमने किसीको कहा है ? अमात्य ने सारी बात राजा से निवेदन कर दी। ३८. ब्राह्मणी पुरोहित की पत्नी अत्यन्त रूप सम्पन्न थी। उसके सौन्दर्य पर राजा श्रेष्ठी आरक्षित और मूलदेव - ये सभी मुग्ध थे। पुरोहित पत्नी चतुर थी, उसने सभी को आने का संकेत दे दिया। वे सभी समय पर आ गए और द्वार पर खड़े हो गए। पुरोहित पत्नी ने कहा- जो महिला का रहस्य जानता है, वह प्रवेश करे। मूलदेव को छोड़कर सब मौन हो गए। मूलदेव बोला- मैं जानता हूं। उसने प्रवेश किया। उसने पूछा- महिला का रहस्य क्या है? वह बोला- मर जाने पर भी किसी को नहीं कहना । वह बोली- तुम विद्वान् भी हो और कामुक भी । वह संतुष्ट हुई और उसके साथ पूरी रात बिताई। प्रातः राजा ने मूलदेव से पूछा- महिला का रहस्य क्या है ? वह बोला- मैं नहीं जानता। राजा ने कहा- तुम अपलाप कर रहे हो। राजा ने उसके वध का आदेश दे दिया। तभी पुरोहित पत्नी ने आकर राजा से निवेदन किया- यही महिला का रहस्य है। जो शरीर त्याग करने पर भी बात किसी को नहीं कहता। यह लौकिक अपरिस्रावी है। गा. ७६० वृ. पृ. २३७ Jain Education International ३९. परिव्राजक एक गांव में एक नापित रहता था वह अनेक विद्याओं का ज्ञाता था। विद्या के प्रभाव से उसका 'क्षुरप्रभांड' अधर आकाश में स्थिर हो जाता था। एक परिव्राजक उस विद्या को हस्तगत करना चाहता था। वह नापित की सेवा में रहा और विविध प्रकार से उसे प्रसन्न कर वह विद्या प्राप्त की। अब वह अपने विद्याबल से त्रिदंड को For Private & Personal Use Only गा. ७६० वृ. पृ. २३८ ६६९७ www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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