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कथा परिशिष्ट
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पर दोषारोपण करने लगे। आभीर को गुस्सा आया, वह नीचे उतर कर आभीरी को पीटने लगा। परस्पर लड़ाईझगड़े के कारण बचा हुआ घी बिखर गया। कुछ कुत्ते चाट गए और कुछ जमीन सोख गई। शेष बचे घी को बेचने में ज्यादा परिश्रम करना पड़ा। इधर अन्य आभीर घी बेचकर अपने-अपने गांव की ओर प्रस्थान कर गए। पीछे से यह आभीर अकेले चला, रास्ते में चोरों ने लूट लिया।
गा. ३६१ वृ. पृ. १०८
३१. आभीरी दंपति (२) एक आभीर अपनी पत्नी के साथ शकट में घी के घड़े लेकर नगर में बेचने गया। अन्य आभीर भी उसके साथ घी बेचने गए। आभीर गाड़ी के ऊपर और आभीरी गाड़ी के नीचे खड़ी थी। लेने या देने में प्रमाद हो जाने पर एक घड़ा हाथ से छूटा और फूट गया। आभीरी बोली-दोष मेरा है, तुम्हारा नहीं। मैंने ठीक से पकड़ा नहीं। आभीर बोला-नहीं, नहीं, दोष मेरा है, तेरा नहीं। मैंने ही जल्दी छोड़ दिया। आभीर तत्काल नीचे उतरा। दोनों ने जल्दी-भूमि पर गिरे घीयुक्त मिट्टी को एकत्रित किया। गर्म पानी में उस मिट्टी को डाला। घी ऊपर आ गया
और मिट्टी नीचे जम गई। घी इक्कट्ठा किया और बेच दिया। अन्य आभीरों के साथ वे अपने गांव चले गए। चोर भी नहीं मिले और घी का पूरा-पूरा मूल्य आ गया।
गा. ३६२ वृ. पृ. १०८
३२. वैयाकरण
एक पुरुष व्याकरण के कुछ सूत्रों को पढ़कर सीमावर्ती गांव में गया। वहां के लोगों से कहा-मैं वैयाकरण हूं। ग्रामीण लोगों ने उसे गांव में रख लिया और अच्छी वृत्ति देने लगे। वह सुखपूर्वक रहने लगा। एक बार अपने शिष्यों सहित एक दूसरा वैयाकरण वहां आया। ग्रामवासियों ने शिष्यों से पूछा-कौन आये हैं? वे बोलेवैयाकरण। ग्रामवासी बोले-हमारे यहां भी एक वैयाकरण है। उसके साथ शब्द संगोष्ठी करो। उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। सब एकत्रित हो गए। संगोष्ठी प्रारंभ हुई। पहले वैयाकरण ने पूछा-काग किसे कहते हैं ? वह बोला-काक। पूर्व वैयाकरण बोला इसमें व्याकरण की क्या विशेषता है? अन्य लोग भी काक ही कहते हैं। मैं क्रीकाक कहता हूं। ग्रामीण हर्षित हुए और अपने वैयाकरण को उत्कृष्ट माना। उसकी जीत हो गई और आगंतुक वैयाकरण की पराजय हो गई। आगन्तुक वैयाकरण रुष्ट होकर नगर में गया। वहां के भोजिक से सारी बात कही। उसने उस वैयाकरण को बुलाया और उसे तिरस्कृत कर गांव से निष्काशित कर दिया।
गा. ३७२ वृ. पृ. ११०
३३. वैद्यपुत्र
एक वैद्य राजकुल में सेवा के लिए नियुक्त था। अचानक उसकी मृत्यु हो गई। राजा ने पूछा-क्या वैद्य के कोई पुत्र है ? उत्तर मिला-हां, पर अशिक्षित है। राजा ने निर्देश दिया, उसे विद्या सिखाओ? शिक्षित बनाओ। वह पढ़ने के लिए अन्यत्र गया। वहां किसी वैद्य के पास विद्या सिखना प्रारंभ की।
एक बार उसने देखा एक बकरी सामने चर रही थी। उसके गले में ककड़ी फंस गई। बकरी को वैद्य के पास लाया गया। वैद्य ने पूछा-बकरी कहां चर रही थी? उत्तर मिला कि घर के सामने चर रही थी। वैद्य अनुभवी था, उसने सोचा जरूर ककड़ी फंस गई है। उसने वस्त्र से गले को बांधकर खींचा, ककड़ी के टुकड़े हो गए और नीचे उतर गई।
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