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________________ कथा परिशिष्ट १८. गणिका एक गणिका चौसठ कलाओं में प्रवीण थी। आगंतुकों का अभिप्राय जानने के लिए उसने अपनी चित्रसभा में मनुष्य जाति के जातिकर्म शिल्प, कुपित-प्रसादन आदि से संबंधित अपने-अपने व्यापार में प्रवृत्त व्यक्तियों के चित्र आलेखित करवाए। जो कोई व्यक्ति वहां आता, अपने व्यापार की प्रशंसा करता, अच्छे-बुरे चित्र की समीक्षा करता, उसके आधार पर वह अंकन कर लेती कि कौन व्यक्ति किस श्रेणी का है, कैसे स्वभाव वाला है और फिर उसके प्रति अनुकूल आचरण कर उसे प्रसन्न कर पर्याप्त धन प्राप्त कर लेती। गा. २६२ वृ. पृ. ८० १९. ब्राह्मणी एक ब्राह्मणी थी। वह चाहती थी कि विवाह के बाद मेरी तीनों पुत्रियां सुखी रहें। ऐसी व्यवस्था करने के लिए उसने अपनी पुत्रियों से कहा-आज तुम पहली बार ससुराल जा रही हो। जब तुम्हारा पति घर में आए तो कोई गलती बताकर उसके सिर पर अपनी एड़ी से प्रहार करना फिर उसकी प्रतिक्रिया मुझे बताना। पहली पुत्री ने अपने पति के सिर पर पाद प्रहार किया। पति ने उसके पांव को सहलाते हुए कहा-'मेरे कठोर सिर से तुम्हारे कोमल पांव में पीड़ा तो नहीं हुई ?' इस घटना चक्र को सुनकर मां ने कहा-'बेटी! वह दास बनकर रहेगा।' दूसरी पुत्री ने प्रहार किया तो उसका पति थोड़ा सा गुस्सा कर शान्त हो गया। इस स्थिति को सुनकर मां ने कहा-'तुम भी थोड़ी सी सावधानी के साथ इच्छानुसार घर में रहो।' ___ तीसरी पुत्री के पति आहत होने पर रुष्ट हो गया, उसे पीटा और उठकर चला गया। इस घटना चक्र को सुनकर मां ने कहा-'बेटी! यह उत्तम है। तुम जागरुकता से देवता की भांति उसकी सेवा करो।' यह निर्देश देकर मां जामाता के पास गई और बोली-'यह हमारी कुल की परम्परा है, अन्यथा वह तुम्हारे प्रति ऐसा व्यवहार कैसे कर सकती है?' ऐसा कहकर उसे प्रसन्न किया। गा. २६२ वृ. पृ. ८० २०. अमात्य एक राजा शिकार के लिए जा रहा था। रास्ते में अश्व ने प्रस्रवण किया। लौटते समय राजा ने उस स्थान को देखा, वहां प्रस्रवण सुखा नहीं स्थिर हो गया। राजा के मन में आया, यहां तालाब हो तो अच्छा रहे। मंत्री ने राजा के अन्तर्मन की बात जान ली और वहां तालाब खुदवा दिया। तट पर वृक्ष लगा दिए। एक दिन राजा उधर से गुजरा, वहां तालाब देख कर मंत्री से पूछा-यह तालाब किसका है? मंत्री ने कहा-आपका। राजा ने कहा-कैसे? मंत्री ने उस दिन की सारी बात बताई। राजा मंत्री पर बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उसका वेतन बढ़ा दिया। गा. २६२ वृ. पृ.८० २१. स्त्री एक स्त्री का पुत्र बीमार था। वह वैद्य के पास गई, औषधी ले आई। उसने सोचा औषधी कड़वी व तिक्त है अतः पुत्र को पीड़ा न हो। यह सोचकर उसने आधी मात्रा में पुत्र को औषधी दी। वह स्वस्थ नहीं हुआ और मर गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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