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________________ कथा परिशिष्ट १. नृप दृष्टान्त एक पुरुष अपने कार्य के लिए राजा के सम्मुख उपस्थित हुआ। मंगल के प्रतीक पुष्प आदि राजा के चरणों में अर्पित कर राजा को प्रणाम किया। राजा उसके विनय से तुष्ट हो गया। राजा के संतुष्ट होने पर उसका कार्य सिद्ध हो गया। यथायोग्य उपचार से किया हुआ कार्य सिद्ध होता है। परिशिष्ट १ २. निधि, विद्या और मंत्र का दृष्टांत निधि का उत्खनन, विद्या और मंत्र को सिद्ध करने के लिए द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से उपचार करना होता है। जो ये सब उपचार करता है। वह निधि खनन, विद्या और मंत्र सिद्ध कर लेता है। जो उपचार नहीं करता वह निधि आदि प्राप्त करने में सफल नहीं होता। गा. २० वृ. पृ. १० ३. वत्स और गाय जब गोपालक श्वेत गाय के वत्स को चूंघने के लिए काली गाय के पास छोड़ता है और काली गाय के वत्स को चूंघने के लिए श्वेत गाय के पास छोड़ता है तब उसे दूध प्राप्त नहीं होता है। यह अननुयोग है। Jain Education International गा. २० वृ. पृ. १० इसके विपरीत श्वेत गाय के वत्स को श्वेत गाय के पास और काली गाय के वत्स को काली गाय के पास छोड़ता है तो दूध प्राप्त हो जाता है। यह अनुयोग है। जैसे अननुयोग से दूध प्राप्त नहीं होता वैसे ही अननुयोग से जो भाव को अन्यथा ग्रहण करता है, उससे अर्थ का विसंवाद होता है, अर्थ के विसंवाद से चारित्र का विसंवाद और उससे मोक्ष का अभाव हो जाता है। मोक्ष प्राप्ति की फलश्रुति के बिना दीक्षा व्यर्थ हो जाती है। For Private & Personal Use Only ४. कुब्जा प्रतिष्ठान नगर में सातवाहन नामक राजा राज्य करता था। वह प्रतिवर्ष भृगुकच्छ नगर में नभवाहन राजा पर चढ़ाई करता और वर्षा ऋतु प्रारंभ होने पर अपने नगर में लौट आता था। एक बार भृगुकच्छ जाते हुए राजा ने आस्थानमंडप में थूक दिया। उसके पास छत्र धारिणी एक कुब्जा स्त्री थी । थूकने के कारण उसने जाना कि अब यह भूमि अपरिभोग्य हो गई है। राजा कहीं अन्यत्र जाना चाहता है। राज्य का यानशालिक उस कुब्जा से परिचित था। उसने राजा का अभिप्राय यानशालिक को बताया। उस यानशालिक ने यान वाहनों को साफ कर, प्रक्षित कर उन्हें प्रस्थित कर दिया। यह देखकर शेष सेना ने भी प्रस्थान कर दिया। राजा रथ में अकेला जा रहा था। उसने धूल आदि के भय से प्रातः जाने की बात सोची। उसने देखा कि सारी सेना प्रस्थित हो चुकी है। गा. १७१ वृ. पृ. ५२ www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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