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छठा उद्देशक
६४६३.एगं कप्पट्ठियं कुज्जा, चत्तारि परिहारिए। होता है। अनुपारिहारिक द्वारा अपराधपद का आसेवन होने
अणुपरिहारगा चेव, चउरो तेसिं ठावए॥ पर वही गीतार्थ मुनि प्रायश्चित्त देने में प्रमाण होता है। . .. नौ पुरुषों में से एक को कल्पस्थित-गुरुकल्प करे। ६४७०.आलोयण कप्पठिते, तवमुज्जाणोवमं परिवहते। चार को पारिहारिक और शेष चार को अनुपारिहारिक
अणुपरिहारिए गोवालए, व णिच्च उज्जुत्तमाउत्ते॥ स्थापित करे।
वे पारिहारिक और अनुपारिहारिक मुनि आलोचना आदि ६४६४.ण तेसिं जायती विग्धं, जा मासा दस अट्ठ य। कल्पस्थित के सम्मुख करते हैं। वे पारिहारिक उद्यानिका
___ण वेयणा ण वाऽऽतंको, णेव अण्णे उवहवा॥ सदृश तप का परिवहन करते हैं। चारों अनुपारिहारिक चारों ६४६५.अट्ठारससु पुण्णेसु, होज्ज एते उवद्दवा। पारिहारिकों के साथ भिक्षा में सदा उद्युक्त (प्रयत्नयुक्त) तथा
ऊणिए ऊणिए यावि, गणे मेरा इमा भवे॥ आयुक्त (उपयुक्त) होकर उनके पीछे-पीछे घूमते हैं, जैसे जो इस प्रकार कल्प-प्रतिपन्न होते हैं उनके अठारह गोपालक गायों के पीछे रहकर उद्युक्त और आयुक्त होकर महीनों तक कोई विघ्न (संहरण आदि) नहीं होता। न उनके घूमता है। कोई वेदना होती है, न आतंक होता है और न अन्य ६४७१.पडिपुच्छं वायणं चेव, मोत्तूणं णत्थि संकहा। उपद्रव। अठारह मास पूर्ण होने पर ये उपद्रव हो सकते
आलावो अत्तणिद्देसो, परिहारिस्स कारणे॥ हैं। कोई मुनि मर जाए या स्थविरकल्पी जिनकल्प में उन पारिहारिकों आदि को नौ आदमी के साथ सूत्रार्थ की चला जाए, तो शेष उसी कल्प का पालन करते हैं। इस प्रतिपृच्छा और वाचना के अतिरिक्त परस्पर संकथा करना प्रकार गण न्यून-न्यून होने पर भी यही मर्यादा सामाचारी नहीं कल्पता। पारिहारिक को कारणवश आत्मनिर्देशरूप होती है।
आलाप जैसे-उलूंगा, बैलूंगा, आदि हो सकता है। ६४६६.एवं तु ठाविए कप्पे, उवसंपज्जति जो तहिं। ६४७२.बारस दसऽट्ठ दस अट्ट छ च्च अट्टेव छ च्च चउरो य। एगो दुवे अणेगा वा, अविरुद्धा भवंति ते॥
उक्कोस-मज्झिम-जहण्णगा उ वासा सिसिर गिम्हे॥ इस प्रकार कल्प स्थापित करने पर, एक-दो मुनि मृत्यु पारिहारिककल्प वाले मुनियों की तपःतालिकाको प्राप्त हो जाएं और एक-दो या अनेक व्यक्ति उपसंपदा
वर्षा शिशिर ग्रीष्म ग्रहण करें, उन्हें ग्रहण कर गण को पूरा करे। वे उपसंपन्न उत्कृष्ट पंचोला चोला तेला मुनि पारिहारिकों के साथ रहते हुए अविरुद्ध होते हैं अर्थात् वे मध्यम चोला । तेला बेला पारिहारिकों के अकल्पनीय नहीं होते।
जघन्य
- तेला बेला उपवास ६४६७.तत्तो य ऊणए कप्पे, उवसंपज्जति जो तहिं। ६४७३.आयंबिल बारसमं, पत्तेयं परिहारिगा परिहरंति।
जत्तिएहिं गणो ऊणो, तत्तिते तत्थ पक्खिवे॥ अभिगहितएसणाए, पंचण्ह वि एगसंभोगो॥ कल्प न्यून अर्थात् एक-दो मुनि से ऊन होने पर जो वहां पारिहारिक मुनि उत्कृष्टतः पंचोला करके आचाम्ल से उपसंपन्न होते हैं उनमें से उतने ही साधुओं को गण में प्रवेश पारणा करते हैं। प्रत्येक पारिहारिक पृथक्-पृथक् भोजन दे जितनों की न्यूनता हो।
आदि करते हैं, यथोक्त सामाचारी का पालन करते हैं। ६४६८.तत्तो अणूणए कप्पे, उवसंपज्जति जो तहिं। पारिहारिक मुनि अभिगृहीत एषणा से भक्तपान लेते हैं। चार
उवसंपज्जमाणं तु, तप्पमाणं गणं करे॥ पारिहारिक मुनि और एक कल्पस्थित-इन पांचों का एक कल्प अन्यून हो और वह जो उपसंपन्न होते हैं, उन । संभोग होता है। वे प्रतिदिन आचाम्ल करते हैं। जो उपसंपन्न होने वालों के यदि नौ का प्रमाण हो जाता है तो कल्पस्थित होता है वह भिक्षा के लिए नहीं जाता, उसके अन्य गण की स्थापना कर दे।
योग्य भक्तपान पारिहारिक मुनि लाते हैं। ६४६९.पमाणं कप्पट्टितो तत्थ, ववहारं ववहरित्तए। ६४७४.परिहारिओ वि छम्मासे अणुपरिहारिओ वि छम्मासा। अणुपरिहारियाणं पि, पमाणं होति से विऊ॥
कप्पट्ठितो वि छम्मासे एते अट्ठारस उ मासा॥ कल्प में यदि पारिहारिकों का कोई अपराधपद हो जाए पारिहारिक मुनि छह मास तक प्रस्तुत तपस्या करते हैं। तो कल्पस्थित मुनि व्यवहार-प्रायश्चित्त देने में प्रमाणभूत अनुपारिहारिक भी छह मास तक तप करते हैं। कल्पस्थित १. उद्यानिकासदृशतप-यथा किल कश्चिद् उद्यानिकांगत एकान्तरतिप्रसक्तः स्वच्छंदसुखं विहरमाण आस्ते, एवं तेपि पारिहारिका एकान्त
समाधिसिन्धुनिमग्नमनसस्तत् तप उद्यानोपमम्।
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