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पांचवां उद्देशक= पर्याप्त लाभ न होने पर दूसरी बार भिक्षा के लिए जा सकता है। धान्य पुलाक के भोजन से वायु का प्रकोप या संज्ञा संभव हो तो अन्य साध्वियों की वसति में संज्ञा का विसर्जन करे या श्राविका के घर में पुरोहड़ में व्युत्सर्ग क्रिया करे। ६०५९.एसेव गमो नियमा, तिविह पुलागम्मि होइ समणाणं।
नवरं पुण नाणत्तं, होइ गिलाणस्स वइयाए॥
तीनों प्रकार के पुलाक संबंधी यही गम-विकल्प श्रमणों के लिए है। इनमें नानात्व यह है-ग्लान के लिए दूध आदि लाने के लिए जिका में साधु जा सकते हैं। यदि पर्याप्त भोजन कर चुके हैं तो स्वयं के लिए रसपुलाक ग्रहण नहीं करते। दूध आदि पीकर फिर भिक्षा के लिए नहीं जाते। कारणवश जा भी सकते हैं। यतना पूर्ववत्।
पांचवां उद्देशक समाप्त
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