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पांचवां उद्देशक =
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समाप्त होने पर उसे अनुशिष्टि दी जाती है। गच्छ से उसका निर्गमन न होने पर कलह होता है। कारण में शब्दप्रतिबद्ध वसति में रहते हैं तो परस्पर या उसके साथ कलह करते हैं, जिससे कि शब्द सुनाई न दें।
राईभोयण-पदं
प्रागुद्दिष्ट कुमार दृष्टांत
एक राजा के तीन पुत्र थे-ज्येष्ठ, मध्यम और कनिष्ठ। तीनों ने सोचा-राजा को मारकर राज्य को तीन भागों में विभक्त कर लें। राजा ने उनका यह षड्यंत्र जान लिया। उसने ज्येष्ठ पुत्र से कहा-तुम युवराज हो। ऐसा क्यों करते हो? उसको भोगहरण, बंधन, ताड़ना आदि से दंड दिया। मध्यमपुत्र का भोगहरण नहीं किया। उसको भी बंधन, खिंसना आदि से दंडित किया। कनिष्ठ के कान मरोड़ कर खिंसना की।
इसी प्रकार लोकोत्तर में उत्कृष्ट-मध्यम और जघन्य व्यक्ति को भी बड़ा, लघु या लघुतर दंड दिया जाता है। ५७८१.अप्पच्चय वीसत्थत्तणं च लोगगरहा दुरहिगम्मो।
आणाए य परिभवो, णेव भयं तो तिहा दंडो॥ सकषाय आचार्य को देखकर लोगों में उनके उपदेशों के प्रति विश्वास नहीं होता। सकषाय शेष मुनियों के प्रति भी विश्वस्तता नहीं रहती। लोगों में गर्दा होती है। क्रोधी आचार्य सभी शिष्यों के लिए दुरधिगम होते हैं। आज्ञा का परिभव होता है, उनमें भय नहीं होता। इसलिए पुरुष विशेष की अपेक्षा से दंड के तीन प्रकार किए गए हैं। ५७८२.गच्छम्मि उ पट्टविए,
जम्मि पदे स निग्गतो ततो बितियं । भिक्खु-गणा-ऽऽयरियाणं,
मूलं अणवट्ठ पारंची। गच्छ में जिस पद पर प्रस्थापित था उससे निर्गत हुआ है तो परगण में उस पद से दूसरा पद प्राप्त होता है। जैसे छेद में प्रस्थापित पद से परगण में संक्रान्त हआ है तो वहां मल प्राप्त करेगा। भिक्षु, गणी और आचार्य-इन तीनों के अंतिम प्रायश्चित्त आते हैं। भिक्षु के मूल, उपाध्याय के अनवस्थाप्य और आचार्य के पारांचिक। अथवा भक्तार्थन आदि जिस पद से गच्छ से निर्गत हुआ है तो परगण में उसके साथ भोजन नहीं किया जाएगा, स्वाध्याय किया जा सकेगा। इस प्रकार जो स्वाध्याय पद से निर्गत है, उसके साथ वंदनक करेगा, जो वंदनकपद से गया है तो उसके साथ आलाप करेगा, जो आलाप पद से निर्गत है तो उसके साथ चारों पदों का परिहार करेगा। ५७८३.कारणे अणले दिक्खा ,
समत्ते अणुसट्टि तेण कलहो वा। कारणे सहे ठिताणं,
कलहो अण्णोण्ण तेणं वा॥ कारणवश किसी अयोग्य को दीक्षा दे दी गई। कारण
चाण,
भिक्खू य उग्गयवित्तीए अणत्थमियसंकप्पे संथडिए निव्वितिगिच्छे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जा-अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा, से जं च मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसिं वा दलमाणे राईभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं॥
(सूत्र ६) भिक्खू य उग्गयवित्तीए अणत्थमियसंकप्पे संथडिए वितिगिच्छासमावन्ने असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जा-अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा, से जं च मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसिं वा दलमाणे राईभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारहाणं अणुग्धाइयं॥
(सूत्र ७) भिक्खू य उग्गयवित्तीए अणत्थमियसंकप्पे असंथडिए निव्वितिगिच्छे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा
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