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________________ १० व्यंजन के एक-एक अक्षर के दो-दो प्रकार के पर्याय होते है स्वपर्याय और परपर्याय इन दोनों के दो-दो प्रकार हैंसंबद्ध और असंबद्ध । ६१. अत्थित्ते संबद्धा, होति अकारस्स पज्जया जे उ। ते चेव असंबद्धा, णत्थित्तेणं तु सव्वे वि ॥ अकार के जो स्वपर्याय हैं वे वहां अस्तित्व से संबद्ध हैं। नास्तित्व से वे ही सभी असंबद्ध हैं। ६२. एमेव असंता वि उ णत्थित्तेणं तु होंति संबद्धा । से चेव असंबद्धा, अत्थित्तेणं अभावत्ता ॥ इसी प्रकार परपर्याय न होने पर भी वे नास्तित्व से संबद्ध हैं। वे ही परपर्याय अस्तित्व की दृष्टि से असंबद्ध हैं, क्योंकि वहां उनके अस्तित्व का अभाव है। ६३. घडसहे घड ऽकारा, हवंति संबद्धपज्जया एते। ते चेव असंबद्धा, हवंति रहसद्दमादीसु ॥ 'घट' शब्द में 'घ' 'ट' और अकार हैं। उनके जो पर्याय हैं वे अस्तित्व से संबद्ध हैं। घट शब्द के वे ही अकार आदि पर्याय रथ आदि शब्दों में अस्तित्व की दृष्टि से असंबद्ध होते हैं। (तात्पर्य है कि रथ शब्द के जो स्वपर्यांय हैं वे अस्तित्व की दृष्टि से संबद्ध हैं क्योंकि वे वहां हैं। घट शब्द के स्वपर्याय नास्तित्व की दृष्टि से वहां असंबद्ध हैं, क्योंकि वे वहां नहीं हैं ।) ६४. संजुत्ता - ऽसंजुत्तं, इय लभते जेसु जेसु अत्थेसु । विणिओगमक्खरं ते सि होंति सम्भावपन्जाया । इस प्रकार घट, रथ आदि शब्दों में संयुक्त अथवा असंयुक्त अक्षर आदि जिन-जिन अर्थों में विनियोग को प्राप्त होते हैं, वे उनके सद्भाव पर्याय अर्थात् स्वपर्याय हैं, दूसरे परपर्याय हैं। ६५. णिच्छयतो सव्वगुरुं सव्वलहुं वा ण बिज्जते दव्वं । ववहारतो तु जुज्जति, बादरखंधेसु णऽण्णेसु ॥ निश्चयनय के अनुसार कोई भी द्रव्य सर्वगुरु अर्थात् एकांतगुरु अथवा सर्वलघु अर्थात् एकांतलघु नहीं होता। व्यवहारनय के अनुसार बादर स्कंध (अनंतप्रदेशी स्कंध ) सर्वगुरु और सर्वलघु होते हैं, दूसरे नहीं । ६६. तत्तो वग्गणाओ, सुहुमाण भवंतऽणंतगुणियातो । परमाणूण य एक्का, संखे संखेयरेऽसंखा || समस्त बादर स्कंध की वर्गणाओं से सूक्ष्म अनंत प्रवेशात्मक स्कंधों की वर्गणा अनंतगुणा अधिक है। समस्त १. अवर्ण के अठारह स्वपर्याय-हस्व, दीर्घ, प्लुत। प्रत्येक के तीन-तीन भेद-- उदात्त, अनुदात्त और स्वरित । प्रत्येक के दो-दो भेद-सानुनासिक, निरनुनासिक | इस प्रकार १८ भेद । Jain Education International बृहत्कल्पभाष्यम् परमाणुओं की वर्गणा एक है संख्येय प्रदेशों की वर्गणा संख्यात और असंख्येय प्रदेशों की वर्गणा असंख्यात है । (संख्यात के संख्यात भेद हैं और असंख्यात के असंख्यात भेद हैं। ६७. इय पोग्गलकायम्मी, सव्वत्थोवा उ गुरुलहू बच्चा उभयपडिसेहिया पुण, अनंतकप्पा बहुवियप्पा ॥ इस प्रकार पुद्गलास्तिकाय में गुरुलघु व्रव्य सबसे कम हैं तथा उभयप्रतिषेधित अर्थात् अगुरुलघु द्रव्यों के अनंत भेद हैं वे अनंतभेद विकल्पों के आधार पर होते हैं। ६८. ते गुरुलहुज्जाया, पण्णाछेदेण वोकसत्ताणं । जा बायरो जहण्णो, अणतहाणीए हार्यता ॥ वे गुरु लघुपर्याय प्रज्ञा के आधार पर पृथक-पृथक किए जाने पर सर्वोत्कृष्ट बादर स्कंध से अधस्तन बादर स्कंधों में अनन्तगुणहानि से तब तक ही हीयमान होते हैं जब तक कि जघन्य बादर स्कंध प्राप्त नहीं हो जाता। (अगुरुलघु पर्याय क्रमशः अनंतगुणवृद्धि से प्रवर्धमान होते हैं।) ६९. केण हवेज्ज विरोहो, अगुरुलहूपज्जवाण उ अमुत्ते । अच्चंतमसंजोगो, जहियं पुण तव्विवक्खस्स ॥ ( अमूर्त द्रव्यों के अगुरुलघु पर्याय परिमाण का चिंतन ) प्रश्न होता है कि अमूर्त द्रव्यों (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय तथा जीवास्तिकाय में गुरुलघुपर्याय का विपक्ष अगुरुलघुपर्याय के एकान्ततः असंयोग में किसका विरोध है ? किस कारण से वे पर्याय नहीं होते? किसीका विरोध नहीं। (किसी के विरोध विनाशन के अभाव में सदा प्रति प्रदेश में अनंत अगुरुलघुपर्याय होते हैं ।) ७०. एवं तु अणतेहिं, अगुरुलहूपज्जवेहिं संजुत्तं । होइ अमुत्तं दव्वं, अरूविकायाण उ उ चउण्हं ॥ चारों अरूपी अस्तिकाय द्रव्यों में प्रत्येक अमूर्त द्रव्य अनंत अगुरुलघुपर्यायों से संयुक्त है। ७१. उवलद्धी अगुरुलहू, संजोग - सरादिणो य पज्जाया। एतेण हुता सव्वागासप्पएसेहिं ॥ जितने अगुरुलघुपर्याय (तथा गुरुलघुपर्याय) हैं, अक्षरों में जितने स्वरूपतः अथवा अभिलाप्यभेद से संयोग हैं, जो उदात्त आदि स्वरों से अभिलाप्यभाव हैं, जो शकुन आदि गत स्वर विशेष है-इन सबकी उपलब्धि होती है (यह प्रत्येक २. एकान्तगुरु होने पर वह द्रव्य एकान्ततः पतनधर्मा हो जाता है। एकान्तलघु होने पर वह द्रव्य एकान्ततः अपतनधर्मा हो जाता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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