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गाथा संख्या विषय
सूत्र २०,२१ ३६३५-३६३७ निर्हृतिका का अर्थ। उसके चार विकल्प। कौन
सा विकल्प शय्यातरपिंड, कौन सा नहीं? उसके
ग्रहण के दोष और शय्यातर की विविध सोच। ३६३८ शय्यातर का पिंड सात कारणों से ग्रहणीय। ३६३९
अगीतार्थ मुनियों के लिए आहृतिका या निर्हृतिका लेने का विधान तथा गीतार्थ के लिए सागारिक
पिंड। ३६४० अगीतार्थ मुनि द्वारा आहृतिका और निहृतिका
का वर्जन करने पर सूत्र साक्ष्य से तथ्य का
प्रतिपादन। ३६४१ धर्मसंघ में व्यक्ति प्रमाण का स्वरूप। ३६४२ कृतघ्नता का स्वरूप। चन्द्रमा और कुमुद का
उदाहरण।
सूत्र २२,२३ ३६४३,३६४४ सागारिक के अंशिका पिंड के कल्प्य-अकल्प्य
की विवेचना। ३६४५ अंश और भाग की एकार्थता। अविभक्त अंशिका
और अव्यवच्छिन्न अंशिका में अन्तर। ३६४६-३६५१ अनिगूढा अंशिका, सागारिक अंशिका, यंत्र
विषयक अंशिका, भोज्य विषयक अंशिका, क्षीर विषयक अंशिका, मालाकार अंशिका का
स्वरूप। उनके ग्रहण की कल्प्य-अकल्प्य विधि। ३६५२
अपवाद रूप में सागारिक अंशिका की ग्रहण विधि।
सूत्र २४ ३६५३ द्रव्य से विभक्त अथवा अविभक्त की
कल्प्याकल्प्य विधि।
=बृहत्कल्पभाष्यम् गाथा संख्या विषय ३६५४ सागारिक पिंड के विभाग का स्वरूप। ३६५५ पूज्यभक्त की परिभाषा और उसके एकार्थक
नाम। ३६५६,३६५७ चेतित, प्राभृतिका, उपकरण, निष्ठित, निसृष्ट,
प्रातिहारिक, अप्रातिहारिक आदि पदों की व्याख्या और उनके एकार्थक नाम।
सूत्र २५-२७ ३६५८ निष्ठित उपकरणों का ग्रहण अकल्पनीय।
वत्थ-पदं
सूत्र २८ ३६५९ उपकरण का अधिकार। ३६६०-३६६३ यतियों को पांच प्रकार के वस्त्र कल्पनीय।
जंगिक, सानक, पोतक और तिरीडपट्ट वस्त्रों का
स्वरूप। ३६६४-३६७२ उपधि-वस्त्रों के परिभोग की विधि, उनकी
संख्या और अपवाद आदि। मर्यादा के अतिक्रम में प्रायश्चित्त का विधान।
रयहरण-पदं
सूत्र २९ ३६७३ मध्यम उपधि रजोहरण का प्रकरण। ३६७४ रजोहरण की व्याख्या और उसके पांच प्रकार। ३६७५ वच्चकचिप्पक और मुंजचिप्पक का स्वरूप। ३६७६-३६७८ रजोहरण पंचक के ग्रहण का क्रम। परिपाटी के
विपरीत ग्रहण करने पर प्रायश्चित्त। और्णिक रजोहरण की प्रशस्यता क्यों ? उसकी अप्राप्ति में उत्क्रम का विधान।
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