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________________ = गाथा संख्या विषय दगतीर-पदं सूत्र १९ २३८३,२३८४ दकतीर सूत्र की विस्तृत व्याख्यार्थ द्वार गाथा। दकतीर पर बैठने सोने आदि से प्रायश्चित्त तथा आज्ञाभंग आदि दोष। २३८५,२३८६ दकतीर विषयक परिभाषाएं और उससे संबंधित सात आदेश। २३८७ दकतीर पर बैठने, खड़ा होने आदि से होने वाले अधिकरणादि दोष। २३८८-२३९८ अधिकरणादि दोषों का स्वरूप तथा साधुओं के कारण से जंगली जानवरों का पलायन, षड्काय की विराधना, अनाचार का सेवन आदि होने का प्रसंग। २३९९ दकतीर पर होने वाली दस प्रवृत्तियां। उनसे निष्पन्न प्रायश्चित्त। २४००-२४१२ निद्रा, निद्रानिद्रा आदि का स्वरूप। दकतीर के दो प्रकार। वहां रहकर दस स्थानों की सेवना करने वाला आचार्य, उपाध्याय, भिक्षु, स्थविर क्षुल्लक-इन पांच निर्ग्रन्थों और प्रवर्तिनी, अभिषेका, भिक्षुणी, स्थविरा, क्षुल्लिका-इन पांच निर्ग्रन्थियों के लिए प्रायश्चित्त के विविध आदेश। २४१३-२४१५ यूपक का स्वरूप और उससे लगने वाला प्रायश्चित्त। २४१६-२४१९ पानी के किनारे आतापना लेने से लगने वाले दोष। २४२०-२४२५ दकतीर, यूपक पर रहने और दकतीर पर आतापना लेने का अपवाद और यतना। चित्तकम्म-पदं सूत्र २०,२१ २४२६,२४२७ सचित्र उपाश्रय में निग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को रहने का निषेध तथा चौथे महाव्रत के खंडित होने की संभावना। जागरिका और स्वाध्याय आदि के अभाव से होने वाले दोष। २४२८-२४३० निर्दोष तथा सदोष चित्रकर्म का स्वरूप। वहां रहने पर आज्ञाभंग आदि दोष। अपवाद में वहां रहने की आज्ञा। २४३१ आचार्य, उपाध्याय और वृषभ आदि प्रवर्तिनी, गणावच्छेदिनी, अभिषेका और भिक्षुणी के बृहत्कल्पभाष्यम् गाथा संख्या विषय निर्दोष अथवा सदोष चित्रकर्म उपाश्रय में रहने से प्रायश्चित्त। २४३२ सचित्र उपाश्रय में चित्रों को देखकर मन में संकल्प-विकल्प तथा परस्पर कलह की उदीरणा। २४३३ तीन बार वसति की गवेषणा करने पर अध्वनिर्गत मुनि अथवा साध्वी को चित्रकर्म युक्त उपाश्रय में रहने की विधि और वहां रक्षणीय यतना। सागारिय-निस्सा-पदं सूत्र २२,२३ २४३४ दोषमुक्त आलय में सागारिक निश्रा में रहने की अनुज्ञा। २४३५-२४३८ सागारिक निश्रा के बिना साध्वियों को नहीं कल्पता-इस प्रकार प्रवर्तिनी को नहीं बताने पर आचार्य को प्रायश्चित्त। उसी प्रकार प्रवर्तिनी द्वारा भिक्षुणियों को न बताने पर भिक्षुणियों को आने वाला प्रायश्चित्त और आज्ञाभंग आदि दोष। २४३९-२४४२ आर्याएं कैसे और किससे परिगृहीत-अपरि गृहीत होती हैं ? विविध उदाहरणों के द्वारा स्पष्टीकरण। २४४३-२४४५ अपवाद की स्थिति में सागारिक अनिश्रित वसति में रहने का विधान। साधु साध्वी की रक्षा कैसे करे? साध्वी के लिए उपयुक्त वसति की व्यवस्था कैसे करे आदि का निर्देश। रक्षा करने • वाले साधु के गुण। सूत्र २४ २४४६ साधु कब निश्रा अथवा कब अनिश्रा में रहे ? अकारण निश्रा में रहने पर तथा कारण में अनिश्रा में रहने पर साधु को प्रायश्चित्त। २४४७ । निष्कारण सागारिक की निश्रा में रहने से निर्ग्रन्थ के होने वाले दोष। २४४८ आपवादिक स्थिति में निर्ग्रन्थों को सागारिक निश्रा में रहने का विधान। सागारिय-उवस्सय-पदं सूत्र २५ २४४९ पूर्वसूत्र से अतिप्रसंग दोष न हो इसलिए प्रस्तुत सूत्र का प्रारंभ। २४५० सागारिक पद का निक्षेप। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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