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________________ विषयानुक्रमणिका गाया संख्या विषय श्रमणियों की क्सति कैसी हो ? २०६० २०६१,२०६२ मतान्तरानुसार श्रमणियों के शय्यातर का स्वरूप । स्थंडिल भूमि के चार प्रकार । २०६३ २०६४-२०६८ श्रमणियों के योग्य-अयोग्य स्थंडिल भूमियों का विवेक | २०६९, २०७० उपद्रव आदि अवसरों में साध्वियों को निर्धारित क्षेत्र तक पहुंचाने की विधि । विहार करते हुए कायिकी तथा संज्ञानिवृत्ति की यतना । २०७२,२०७३ अवमानना की दृष्टि से मात्रक आदि ग्रहण करने की विधि तथा परिष्ठापन की आज्ञा । वारक को अन्तर्लिप्त न करने से जीव विराधना । निर्ग्रन्थियों के लिए कायिकी करने में अपेक्षित २०७१ २०७४ २०७५ यतना । २०७६ - २०७९ साध्वियों का आहार विभाग और आहार करने की विधि। २०८०-२०८२ आर्यिकाओं का सौहार्द्रपूर्ण अवस्थिति देखकर लोगों के द्वारा महिमा मंडन । २०८३ २०८६ प्रत्यनीक व्यक्ति के द्वारा तरुणी साध्वी को अभिद्रुत होने पर बचाव करने के विविध उपाय। उपद्रुत होने पर यदि साध्वियां गुरुणी को नहीं कहती हैं तो प्रायश्चित्त । २०८७ २०८८ भिक्षा गमन के लिए वृद्ध और तरुणी साध्वियां कितनी होनी चाहिए ? लोगों में विविध तर्कणा । २०८९ २०९१ साध्वियों की गमनविधि तथा साध्वियां स्थविरा और तरुणियां कहां और उनके खड़े रहने की विधि कोठे के द्वार से बाहर खड़ी स्थविरा द्वारा प्रत्यनीक द्वारा उपद्रव उत्पन्न होने पर तरुणी साध्वी की रक्षा का उपाय। रूपवती साध्वी की रक्षा के लिए विविध उपाय । २०९३ - २०१७ तीन आदि के समूह में भिक्षा ग्रहण करने के लाभ। परस्पर विरोधी भोजन ग्रहण करने पर संयमोपघात और आत्मोपपात । २०९८,२०९९ वेद के तीन प्रकार । उदाहरण द्वारा उनका स्पष्टीकरण | २०९२ Jain Education International गाथा संख्या विषय २१००-२१०२ स्त्रीलिंग की रक्षा का प्रयोजन तथा अत्यधिक यतना करने के कारण। २१०३-२१०५ साधुओं को एक मास और साध्वियों को दो मास रहने की अनुज्ञा क्यों ? उसका समाधान । एक स्थान में दो मास से अधिक रहने पर प्रायश्चित | सूत्र ९ २१०६-२१०८ सपरिक्षेप तथा सबाहिरिका क्षेत्र में आर्यिकाओं के रहने की मर्यादा। २१०९-२१२४ गच्छ और जिनकल्पी में महर्द्धिक कौन ? विविध दृष्टान्तों द्वारा उसका समाधान । एगत्तवासविधिनिसेध-पदं सूत्र १० २१२५, २१२६ ग्राम, नगर आदि क्षेत्रों में श्रमण कहां रहे? सूत्रकार द्वारा समाधान । २१२७ वगड़ा, द्वार एवं निर्गम प्रवेश पद की व्याख्या । २१२८-२१३१ द्वारपद और निर्गम-प्रवेशपथ-इन दोनों में से एक का कथन क्यों नहीं? शिष्य द्वारा प्रश्न, आचार्य का समाधान | एक बगड़ा एक बारवाले क्षेत्र में निर्यन्थनिर्ग्रन्थी का रहना निषिद्ध तथा उसके दोष । एक वगड़ा और एक द्वार वाले क्षेत्र में पहले एक श्रमण वर्ग अथवा श्रमणी वर्ग ठहरे हुए हों तो वहां बाद में आकर ठहरने वाले को प्रायश्चित्त और दोष २१३२ ५५ २१३३ २१३४ For Private & Personal Use Only जहां पहले श्रमणी स्थित है यदि वहां भिक्षा की सुलभता जानकर कोई आचार्य गच्छ को लेकर उस क्षेत्र में ठहरता है तो उन्हें प्रायश्चित्त और आज्ञाभंग आदि दोष २१३५-२१५३ गच्छ के रहने योग्य क्षेत्र की प्रत्युपेक्षा के लिए भेजे हुए श्रमणों द्वारा श्रमणी भावित क्षेत्र की जानकारी आचार्य, उपाध्याय, वृषभ, भिक्षु आदि उसकी कांक्षा करे तो प्रायश्चित्त । द्रव्याग्नि और भावग्नि का स्वरूप । २१५४-२१५६ साधु-साध्वियों के मोह (वेद) का उदय कैसे ? कृषक के उदाहरण से उसका समाधान । २१५७-२१६२ मोह के उदित होने पर उसका निरोध क्यों नहीं? योद्धा और गारुडिक दृष्टान्त द्वारा गुरु से समाधान । www.jainelibrary.org.
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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