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________________ बृहत्कल्पभाष्यम् ६८८ ७१० गाथा संख्या विषय दो प्रकार के विहार की अनुज्ञा। ६८९-६९१ गीतार्थ की योग्यता व गीतार्थ कौन ? ६९२ निश्रा का विवेक ६९३ जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट गीतार्थ का स्वरूप। ६९४,६९५ एकल विहार के दोष और उससे निष्पन्न प्रायश्चित्त। ६९६,६९७ एकल विहार के लिए मंद कौन? ६९८-७०२ एकाकी विहार के दोष। ७०३,७०४ अबहुश्रुत और अगीतार्थ को गच्छ का भार सौंपने पर प्रायश्चित्त। ७०५-७०७ गणदायक तथा गणधारक की चतुर्भंगी व उससे निष्पन्न प्रायश्चित्त विधि। ७०८८ आचार्य की योग्यता का कथन। ७०९ प्रायश्चित्त का करणत्रय और योगत्रय से परिहार करने वाला कौन? छेद प्रायश्चित्त के दो प्रकार और उनकी व्याख्या। ७११ मूल आठवां प्रायश्चित्त तथा छेद और मूल में भेद। ७१२ अनवस्थाप्य और पारांचिक से प्रायश्चित्त दस प्रकार का। ७१३,७१४ सुलभ बोधि कौन? ७१५ शिष्य का प्रश्न-बारह कल्प में उत्सारकल्प का उल्लेख क्यों नहीं? ७१६ उत्सारकल्पिक में होने वाले दोष। ७१७ उत्सारवाचक के कारण जिनशासन की अपभ्राजना। उत्सारवाचक आचार्य की घटना। ७१८ उत्सारकल्पिक की अज्ञानता। ७१९-७२३ उत्सारकल्पिक के लगनेवाली योग विराधना का कथन तथा सियार का दृष्टान्त। ७२४ उत्साररूपकृत आचार्य से होने वाले दोष। ७२५ वाचक पद की हीलना कब और कैसे? ७२६ उत्सारकल्पिक के अनन्त जन्म-मरण निमित्तभूत कर्मरजों का बंधन। ७२७,७२८ क्रमपूर्वक सूत्र का अध्ययन करने से लाभ। ७२९-७३१ उत्सार कल्प है ही नहीं तो लाभ कहां से आया ? शिष्य का प्रश्न और उसका समाधान। ७३२ उत्सारणा कल्प करा सकने की अर्हता किसमें ? ७३३-७३६ उत्सार कल्प के योग्य कौन? ७३७,७३८ अन्य मत के आधार पर उत्सार कल्पिक के गुण। गाथा संख्या विषय ७३९ गुणों से रहित को उत्सारकल्प करवाने वाले आचार्य को प्रायश्चित्त। ७४० उत्सार कल्प करवाने का कारण। ७४१ उत्साकल्प मुनि की वस्त्रैषणा कैसे? ७४२ एक व्यक्ति अनेक व्यक्तियों के पुण्य का हनन कर सकता है। रक्तपट भिक्षु का उदाहरण। ७४३ वस्त्रों का उत्पादन कैसे? ७४४ दृष्टिवाद का उत्सार क्यों ? ७४५,७४६ उत्सारकल्प में स्वाध्यायिकी की काल-मर्यादा। ७४७-७५० उत्सारकल्पिक को आचार्य किस प्रकार की सुविधा दे? इसका विवेचन। ७५१ चंचल के चार प्रकार। ७५२ गति चंचल की व्याख्या तथा स्थान चंचल के प्रकार। ७५३,७५४ भाषा चंचल के प्रकार और व्याख्या। ७५५ भाव चंचल की व्याख्या। ७५६ किन कारणों से चारों चंचलताएं विहित ? ७५७,७५८ अनवस्थित के दो प्रकार और विवेचन। ७५९ मेधावी के तीन प्रकार। ७६० परिश्रावी और अपरिश्रावी का कथन। अमात्य और बटुकी का दृष्टान्त। ज्ञायक और विनीत को सूत्र की वाचना न देने पर प्रायश्चित्त। ७६२,७६३ छेदसूत्र के अर्थ के लिए अयोग्य ? ७६४-७६६ द्रव्य और भाव तिन्तिणिक के प्रकार और व्याख्या। ७६७ चलचित्त का विवेचन। ७६८ गाणंगणिक की व्याख्या व उससे निष्पन्न प्रायश्चित्त। ७६९ दुर्बल चारित्री की व्याख्या। ७७० परिभाषी आचार्य का विवेचना ७७१ मंदधर्मा श्रमण अपवादपद की स्पृहा करता है। ७७२,७७३ आचार्य का परिभव करने वाले शिष्य के दो प्रकार और उनकी व्याख्या। ७७४ वामावर्त्त की व्याख्या। ७७५ पिशुन की व्याख्या तथा उससे निष्पन्न प्रायश्चित्त। ७७६ आदिम अदृष्टभाव की व्याख्या। ७७७,७७८ सामाचारी के दो प्रकार और उनकी व्याख्या। ७६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002532
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages450
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size14 MB
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