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बृहत्कल्पभाष्यम्
मुनि मौन रखें। यदि महिलाएं धान्य चुरा रही हों तो उनको इस प्रकार कहें कि दूसरे भी उन वचनों को सुन सकें। ३३८०.साहूणं वसहीए, रत्तिं महिला ण कप्पती एंती।
बहुगं च णेसि धण्णं, किं पाहुणगा विकालो य॥ साधुओं के वसति में-उपाश्रय में रात्री में महिलाओं का आना नहीं कल्पता। तुम यहां से बहुत धान्य ले जा रही हो तो क्या मेहमान आ गए हैं। अथवा अभी विकाल बेला है अतः अभी धान्य ले जाने का समय नहीं है। ३३८१.तेणेसु णिसट्टेसुं, पुव्वा-ऽवररत्तिमल्लियंतेसु।
तेणबियरक्खणट्ठा, वयणमिणं बेति गीतत्था॥ ३३८२.जागरह नरा! णिच्चं, जागरमाणस्स वडते बुद्धी।
जो सुवति ण सो धण्णो,जो जग्गति सो सया धण्णो॥ उपाश्रय में ही पूर्वरात्र या अपरात्र में छिपे हुए निसृष्ट चोरों से धान्य की रक्षा करने के लिए गीतार्थ मुनि उच्च स्वरों में ये वचन कहेंगे-हे मनुष्यो! जागो, प्रतिदिन जागरूक रहो। जो जागता है उसकी बुद्धि बढ़ती है। जो सोता है वह धन्य नहीं होता। ज्ञानादि के योग्य नहीं होता। जो जागता है, वह सदा धन्य है। ३३८३.सीतंति सुवंताणं, अत्था पुरिसाण लोगसारत्था।
तम्हा जागरमाणा, विधुणध पोराणयं कम्म॥ सोने वाले पुरुषों के अर्थ-ज्ञान आदि जो तीनों लोक में सारभूत हैं, वे क्षीण हो जाते हैं। इसलिए जागते रहते हुए पुरातन कर्मों को नष्ट कर डालो। ३३८४.सुवति सुवंतस्स सुतं, संकित खलियं भवे पमत्तस्स।
जागरमाणस्स सुतं, थिर-परिचितमप्पमत्तस्स। जो सोता है उसका श्रुत भी सो जाता है, विस्मृत हो जाता है। जो प्रमत्त होता है उसका श्रुत शंकित तथा स्खलित हो जाता है। जो जागता है तथा जो अप्रमत्त रहता है उसका श्रुत स्थिर और परिचित रहता है। ३३८५.नालस्सेण समं सुक्खं, न विज्जा सह निद्दया।
न वेरग्गं ममत्तेणं, नारंभेण दयालुया। जहां आलस्य है वहां सुख नहीं है। जहां निद्रालुता है वहां विद्या नहीं है। जहां ममत्व है वहां वैराग्य नहीं है और जहां आरंभ-हिंसा है, वहां दयालुता नहीं है। १. वत्स जनपद में कौशांबी नगरी का राजा शतानीक था। उसकी
बहिन का नाम था जयंती। वह परम श्राविका थी। एक बार भगवान् वर्द्धमान वहां पधारे। जयंती ने भगवान से पूछा-भंते! सोना अच्छा है या जागना? भगवान् ने कहा-जयंती! धार्मिक
३३८६.जागरिया धम्मीणं, आहम्मीणं च सुत्तया सेया।
वच्छाहिवभगिणीए, अकहिंसु जिणो जयंतीए॥ धार्मिक व्यक्तियों की जागरिका श्रेयस्करी है. और अधार्मिक व्यक्तियों की सुप्तता श्रेयस्करी है। इस प्रकार जिनेश्वरदेव ने वत्स जनपद के अधिपति शतानीक की बहिन जयन्ती को कहा था।' ३३८७.सुवइ य अयगरभूओ सुयं च से नासई अमयभूयं।
होहिइ गोणब्भूओ, नट्ठम्मि सुए अमयभूए।। जो अजगर की भांति निश्चिंत होकर सोता है, उसका अमृतमय श्रुत नष्ट हो जाता है। अमृतमय श्रुत के नष्ट हो जाने पर वह बैल के सदृश हो जाता है। ३३८८.तासेऊण अवहिए, अचेइय हिए व गोसि साहति।
जाणंता वि य तेणं, साहंति न वन्न-रूवेहिं। चोरों ने साधुओं को डरा धमका कर धान्य का अपहरण कर लिया। अनाक्रान्तिक चोर आए। साधुओं को ज्ञात नहीं हुआ। वे भी धान्य लेकर चले गए। प्रातःकाल शय्यातर को कहा-चोर धान्य लेकर चले गए। उसने पूछा-कौन थे वे? चोरों को जानते हुए भी मुनि उनके रूप-वर्ण की कुछ भी पहचान न बताएं। ३३८९.सुण सावग! जं वत्तं, तेणाणं संजयाण इह अज्ज।
तेणेहिं पविट्ठहिं, जाहे नीएक्कसिं धन्न। ३३९०.ताहे उवगरणाणिं, भिन्नाणि हियाणि चेव अन्नाणि।
हरिओवही वि जाहे, तेणा न लभंति ते पसरं।। ३३९१.गहियाऽऽउह-प्पहरणा, जाधे वधाए समुट्ठिया अम्हं।
नत्थि अकम्मं ति ततो, एतेसि ठिता मु तुण्हिक्का॥ शय्यातर को आचार्य कहते हैं-श्रावक! यहां आज चोरों और साधुओं के मध्य जो हुआ, उसे तुम सुनो। चोर इस धान्यगृह में प्रविष्ट हुए और जब उन्होंने धान्य बाहर निकाला तब हमारे कुछेक उपकरणों को फाड़ डाला और कुछेक उपकरणों का हरण कर लिया। जब वे दूसरी बार धान्य चुराने आए तब उपधिहारक उन चोरों को हमने रोका तब वे अपने आयुध और प्रहरण से हमारे वध के लिए तत्पर हो गए और कहा-'श्रमणो! मौन बैठे रहो। अन्यथा हम सबको मार डालेंगे।' तब हमने सोचा-'इन पापियों के लिए कुछ भी अकार्य नहीं है। इसलिए हम मौन रहे।'
व्यक्तियों का जागना अच्छा है, सोना अच्छा नहीं है और अधार्मिक व्यक्तियों का सोना अच्छा है, जागना अच्छा नहीं है।
(भगवती १२ उ.२)
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